SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हिंदी काव्य में निर्गुण संप्रदाय कर देना पड़ता था जो 'जज़िया' कहलाता था । सुलतान अलाउद्दीन के दरबार में रहनेवाले काज़ी मुगासुद्दीन सरीखे धर्मनिष्ठ व्यक्ति को भी यह व्यवस्था स्वाभाविक और उचित जँचती थी' । हिंदुओं से वसूल किए जानेवाले कर कम न थे । अलाउद्दीन के राजत्वकाल में उन्हें अपने पसीने की कमाई का आधा राज- कोष में दे देना पड़ता था । ऐसी स्थिति में उनके पास इतना भी न बच रहता था कि वे किसी तरह अपने कष्टमय जीवन के दिन काट सकते । बरणी के अनुसार, हिंदुओं में से जो धनाढ्य समझे जाते थे, वे भी घोड़े पर सवारी न कर सकते थे, हथियार न रख सकते थे, सुंदर वस्त्र न पहन सकते थे, यहाँ तक कि पान भी न खा सकते थे । उनकी पत्नियों को भी मुसलमानों के यहाँ मजदूरी करनी पड़ती थी । २ " हिंदुओं के लिये धार्मिक स्वतंत्रता का तो प्रश्न ही नहीं उठ सकता था । उनके धर्म के लिये प्रत्यक्ष रूप से घृणा प्रदर्शित की जाती थी । देवालयों को गिराना देवमूर्तियों को तोड़ना और उनको अनुचित स्थानों में चुनवाना प्रायः प्रत्येक मुस्लिम विजेता और शासक के लिये शौक का काम होता था । फ़ीरोज़शाह ने ( रा०१३५७, मृ०-१३८८ ) इसलिये एक ब्राह्मण को जीता जला दिया था कि उसने खुले ग्राम हिंदू विधि के अनुसार पूजा की थी ३ । फ़िरिश्ता ने कैथन के रहनेवाले बुड्ढन नाम के एक ब्राह्मण का उल्लेख किया है जिसकी सिकंदर लोदी के सामने इसलिये हत्या कर डाली गई थी कि उसने जन-समुदाय में इस बात की घोषणा ( १ ) बरणी - " तारीख़ फीरोज़शाही"; "बिब्लोथिका इंडिका", पृ० २०१; ईलियट, पृ० १८४; ईश्वरीप्रसाद - 'मेडीवल इंडिया', पृ० २०८ और ४७५ । ( २ ) "तारीखे फ़ीरोज़शाही", पृ० २८८; ई० प्र० - "मेडीवल इंडिया", पृ० १८२-८३; "बिब्लोथिका इंडिका", ४७५ | ( ३ ) स्मिथ "स्टूडेंट्स हिस्टरी ऑफ इंडिया", पृ० १२६ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy