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________________ नागरीप्रचारिणी पत्रिका की थी कि हिंदू धर्म भी उतना ही महान है जितना पैगंबर मुहम्मद का धर्म। कहते हैं कि यह दंड उसे उलमाओं की एक समिति के निर्णय के अनुसार मिला था। उलमानों ने उसे मृत्यु और इस्लाम इन दोनों में से एक को चुनने को कहा था। बुड्ढन ने आत्मा के हनन की अपेक्षा शरीर के हनन को श्रेयस्कर समझा, और वह मरकर इतिहास के पृष्ठों में अमर हो गया । इस प्रकार पठानी सल्तनत के समय तक आदरास्पद राष्ट्रजन (सिटिज़न) के समस्त अधिकारों से हिदू जनता सर्वथा वंचित थी। उसका निराशामय जीवन विपत्ति की एक लंबी गाथा मात्र रह गया था। कोई ऐसी पार्थिव वस्तु उसके पास न रह गई थी जो उसके अनुभव की कटुता में मिठास का जरा भी सम्मिश्रण कर सकता। उसके लिये भविष्य सर्वथा अंधकारमय हो गया था। अंधकार की उस प्रगाढता में प्रकाश की क्षीण से क्षीण रेखा भी न दिखलाई पड़ती थी। कितु हिंदू-धर्म को केवल मुसलमानों के ही नहीं, स्वयं हिंदुओं के अत्याचार से भी बचाना आवश्यक था। अपने ऊपर अपना ही यह अत्याचार हिदू-मुस्लिम-संघर्ष से प्रकाश में "प्राया। हिंदुत्व ने इस बात का प्रयत्न किया है कि सामाजिक हो अथवा राजनीतिक, कोई भी धर्म न्यत्तिगत छीनाझपटो का विषय होकर सामाजिक शांति में बाधक न बने। इस दृष्टि से उसमें मनुष्य मनुष्य के कार्यों की मर्यादा पहले ही से प्रतिष्ठित कर दी गई है। यही वर्ण-व्यवस्था है, जिसमें गुणानुसार कर्मों का विभाग किया गया है। इसमें संदेह नहीं कि मनुष्य के गुण बहुधा परिस्थितियों के ही परिणाम होते हैं। प्रतएव धोरे धारे वर्ण का जन्म से ही माना जाना स्वाभाविक था, क्योंकि परि. (१) ईश्वरीप्रसाद-"मेडीवल इंडिया", पृ० ४८१-८२। स्था की विषमता Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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