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विविध विषय
४६१ [३] पदमावत की लिपि तथा रचना-काल 'पदमावत की लिपि तथा रचना-काल' (ना०प्र०प० भाग १२, अंक १-२) नामक लेख में हमने यह सिद्ध करने की चेष्टा की थी कि पदमावत की लिपि कैथी तथा उसका रचना-काल सन् ६२७ से सन् १४८ हिजरी तक है। श्रद्धेय ओझाजी ने हमारे इस कथन को असाधु सिद्ध करने का कष्ट किया है। जहाँ तक हमसे हो सका है, हमने श्री ओझाजी की सम्मतियों पर विचार किया है, फिर भी हमें अपना मत ही साधु प्रतीत होता है। निदान, हमारा यह धर्म है कि हम एक बार फिर इस विषय पर कुछ विचार करें और देखें कि श्रद्धेय ओझाजी की बातें हमें क्यों अमान्य हैं। श्री ओझाजी की प्रथम टिप्पणी (पृ० १०५) में कहा गया है-"जायसी ने पदमावत हिंदी में लिखी या उर्दू में यह अनिश्चित है, परंतु हिजरी सन् ६४७ का ६२७ हो जाना यही बतलाता है कि यह भ्रम उर्दू लिपि के कारण ही हुआ हो।" आगे चलकर आप कहते हैं-“यदि मूल प्रति हिंदी लिपि में होती तो ४ के स्थान में २ पढ़ा जाना सर्वथा असंभव था, यदि हि० स० ९२७ में उसकी रचना हुई होती तो ६४७ लिखने की
आवश्यकता सर्वथा न थी। हि० स० ६४७ में शेरशाह दिल्ली के साम्राज्य का स्वामी बन चुका था।.....'अधिकतर प्रतियों में सन् ६४७ हि० ही मिलता है वही मानने योग्य है।... 'यदि शेरशाह के राज्याभिषेकोत्सव के बाद उसने शेरशाह की वंदना लिखी होती तो वह रचना का सन् भी राज्याभिषेक के बाद का धर देता।"
साहस तो नहीं होता, पर सत्य के अनुरोध से गुरुजनों की सेवा में नम्र निवेदन न करना अपराध ही समझा जायगा; अतः कुछ निवेदन करना उचित जान पड़ता है । पदमावत की लिपि के विषय में हमारा कथन था कि वह कैथी लिपि थी। श्री ओझाजी का कहना है कि वह उर्दू लिपि थी। अपने मत के प्रतिपादन
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