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विशाल भारत के इतिहास पर स्थूल दृष्टि १४१ यह राज्य तलवार के बल से नहीं किंतु विश्व-प्रेम, सेवाभाव, प्रात्म-समर्पण, तथा आध्यात्मिक बल के द्वारा स्थापित किया गया। इस प्रकार भारतवर्ष के सम्राट अपने अनोखे आदर्श को लेकर विश्व विजय करने निकले और यहीं से "विशाल भारत' की नींव पड़ो।' । पहले तो अशोक ने सारे देश में धर्म अर्थात् सत्य और सौजन्य का प्रचार किया। फिर अन्य देशों को भी धर्म
_ ग्रंथि में प्रथित करने के लिये देश-देशांअशोक ने भारतीय
'तरों में प्रचारक भेजे, जैसे-(१) सभ्यता का कितना
"सीरिया, जहाँ उस समय एंटियोकस विस्तार किया
थियोस राज्य करता था; (२) मिस्र, जहाँ उस समय टोलेमी फिलाडेल्फस का राज्य था; (३) साइरीन, जहाँ मेगस नाम का राजा था; (४) मेसेडोनिया, जो एंटिगोनस गोनेटस के राज्य में था, इत्यादि। इसके अतिरिक्त उसने अपने पुत्र महेंद्र तथा पुत्री संघमित्रा को लंका भेजा और स्वर्णभूमि अर्थात् बर्मा में भी प्रचारक भेजे।
अशोक के इस महान कार्य से संसार ने पहले पहल इस बात का अनुभव किया कि राजनीति और राज्यविस्तार केवल स्वार्थ के लिये ही नहीं वरन् आध्यात्मिक उद्देश से भी हो सकता है। इस प्रकार महाराज अशोक के द्वारा भारतवर्ष
(१) महाभारत तथा अन्य प्राचीन ग्रंथों से मालूम होता है कि उस समय भी इस देश का साम्राज्य भारतवर्ष के बाहर दूर दूर देशों पर रहा होगा। किंतु उसका विस्तृत विवरण विदित नहीं है।
(२) इन देशों के नाम २५७.६ पू. ई. के अशोक के शिलालेखों में दिए हुए हैं।
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