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नागरीप्रचारिणी पत्रिका एथेंस, स्पार्टा, इत्यादि, उधर रोम, सभी साम्राज्य स्थापना की दौड़ में बहने लगे। अंत में सिकंदरे प्राजम ने समस्त पश्चिमी एशिया को अपने वश में किया। यूनान में सिकंदर ने और रोम में कैसरों ने सार्वभौम साम्राज्य के आदर्श को अंधे होकर पकड़ा। उन्होंने अपने से पहले के साम्राज्यों के इतिहास से शिक्षा न ली। वे इस बात को भूल गए कि जो राज्य पाशविक शक्ति की रतीली बुनियाद पर खड़े होते हैं वे चिरस्थायी नहीं होते। सिकंदर के मरते ही उसका साम्राज्य छिन्न भिन्न हो गया। किंतु उसके उत्तराधिकारियों को भी वही नशा सवार था। उन्होंने गिरे हुए भवन को फिर से उठाने का यत्न किया। उन्होंने पड़ोसियों को नष्ट करके अपनी स्वार्थ-सिद्धि के हेतु अमानुषिक बल के आधार पर साम्राज्य खड़ा करने की फिर से चेष्टा की ।
इसके विपरीत भारतवर्ष के सम्राट अशोक ने इसी युग में एक दूसरे ही प्रकार के साम्राज्य की स्थापना की। उसने संसार के सामने शांति के राज्य का एवं अपने सामने मनुष्य मात्र (संभवतः जीव मात्र) की उन्नति का प्रादर्श रखा। इस महान् आदर्श को लेकर उसने अपने जीवन में दो बड़े कार्य संपादित किए। कलिंग युद्ध के बाद ही उसने स्वार्थी साम्राज्यवाद का एकदम बहिष्कार कर दिया। परंतु वह इतने से ही संतुष्ट न रहा । उसने पाशविक शक्ति के स्थान पर मानुषिक तथा आत्मिक शक्ति से प्राध्यात्मिक शक्ति का साम्राज्य स्थापन करने का संकल्प किया और इस संकल्प को अपने जीवन में पूरा करके दिखा दिया। इस प्रकार सम्राट् धर्माशोक का धार्मिक साम्राज्य समस्त एशिया पर स्थापित हुआ।
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