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________________ अरिहंत परमात्मा तथा पंचमहाव्रती साधु मुनिराज के सिवा अन्य : ... किसी के भी आगे देवबुध्दि से और गुरुबुध्दि से सिर नहीं झुकाता __ था। इस प्रकार वह दृढ़तापूर्वक धर्म का पालन किया करता था। एक बार उस नगर में गैरिक नामक एक तापस का आगमन हुआ। नगर के लोग उसके दर्शनार्थ फल-फूल, मेवा मिष्ठान्नादि ले कर गये। राजा ने भी वहाँ जा कर उसका सत्कार किया; पर कार्तिक सेठ वहाँ नहीं गया। इससे तापस को उस सेठ पर बहुत गुस्सा आया। वह उसे नीचा दिखाने के लिए अवसर ढूँढने लगा। ... ___ एक बार राजा ने उस तपस्वी को भोजन के लिए अपने महल में आमंत्रित किया। तपस्वी ने राजा से कहा कि यदि कार्तिक सेठ में अपनी पीठ पर भोजन की थाली रख कर मुझे भोजन कराये, तो मैं । - आपके यहाँ भोजन के लिए आ सकता हूँ। . राजाने उसकी बात स्वीकार कर ली। फिर उसने कार्तिक सेठ को बुलाकर कहा - 'सेठ! गैरिक तापस को मैने भोजन के लिए आमंत्रित किया है; अतः उसे भोजन परोसने के लिए आप राजमहल में पधारें।' सेठ को राजा की बात मान लेनी पड़ी। राजा ' का आदेश भला कौन टाल सकता है? नियत समय पर तापस राजमहल में उपस्थित हुआ। सेठ भी वहाँ हाजिर था। उसने थालीमें खीर परोसी, पर तापस ने भोजन नहीं किया। वह तो सेठ को अपने आगे झुकाना चाहता था; - इसलिए उसने कहा, - 'सेठ मेरे आगे झुक कर थाली अपनी पीठ पर रखे, तो ही मैं भोजन करूँगा; अन्यथा नही।' । राजाके आदेश के कारण सेठ को झुकना पड़ा। सेठ की | उँगली में जिन प्रतिमांकित अंगूठी थी। सेठ ने उस प्रतिमा को श्रीमुनिसुव्रत स्वामी चरित ४६ Sudhamaswam-Gyanbhandarbmara, Sarat
SR No.034967
Book TitleMunisuvrat Swami Charit evam Thana Tirth Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnanandvijay
PublisherRushabhdevji Maharaj Jain Dharm Temple and Gnati Trust
Publication Year1989
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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