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गुजरात के सम्राट कुमारपाल के मंत्री उदयन के पुत्र : आम्रभट्ट ने भी शकुनिका विहार का जीर्णोद्धार करवाया था।
मुनिराज के उपदेश से राजकुमारी ने सम्यक्त्वमूल बारह व्रत । ग्रहण किये और उत्तम धर्म की आराधना की। अन्त में अनशन "पूर्वक उसने देहत्याग करके देवगति प्राप्त की।
भश्च नगर में 'शकुनिका विहार' जिनप्रासाद आज भी विद्यमान है और उस में श्रीमुनिसुव्रत स्वामी भगवान की प्रतिमा प्रतिष्ठित है; पर यह मन्दिर मूलमन्दिर नहीं है। मुसलमानों के शासन काल में मूलमन्दिर ग्यासुद्दिन तुगलक के द्वारा इ. स. १३२९ में नष्ट कर दिया गया था और उसका मस्जिद में रूपान्तर कर दिया गया था। वह मन्दिर भरुच में आज भी विद्यमान है और उसमें जिनमदिः के अवशेष दिखाई देते हैं। मंदिर की मूर्तियाँ दीवारों में उल्टी लगा दी गयी हैं और उनकी पीठ पर कुरान की '. आयतें खोदी गयी है। वर्तमान में यह मंदिर/मस्जिद भारत सरकार के पुरातत्त्व विभाग के अधिकार में है।
महावीर वाणी हयं नाणं कियाहीणं, स्या अण्णाणो किया। पासंतो पंगुलो दइटो, धावमाणो य अंधमो।।
जिस प्रकार लंगडा व्यक्ति वन में लगी हुई आग देखने पर भी भागने में असमर्थ होने से जल मरता है एवं व्यक्ति
दौड सकते हुए भी देखने में असमर्थ होने से जलकर मरता है, * उसी प्रकार क्रिया के बिना ज्ञान व्यर्थ है और अज्ञानियों की . क्रिया व्यर्थ है।
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