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भरुच नगर का एक व्यापारी ऋषभदत्त एक बार व्यापार के सिलसिले में सिंहलद्वीप पहुँच गया। वृषभदत्त आर्हतधर्म का उपासक और नवकार मन्त्र का आराधक था। वह खाली समय में नवकार मन्त्र का ही स्मरण किया करता था। ईमानदारी के कारण 'वह दूर देश के राजओं का भी विश्वास पात्र बन गया था।
___ जहाज से उतरते ही वह बहुमूल्य नजराना लेकर राजा के ___ दरबार में पहुँचा। मन्त्री, दण्डनायक, सेनापति, कोषाध्यक्ष आदि
अधिकारी दरबार में उपस्थित थे। सुदर्शना भी अपने पिता के पास बैठी थी। उसने अपने कपड़ों पर इत्र छिडक रखा था।
उस समय इत्र की सुगंध के कारण सेठ को अचानक छींक आ गयी। छींक आते ही अपनी आदत के अनुसार उन्होंने तुरन्त 'नमो अरिहंताणं' पद का उच्चारण किया। 'नमो अरिहंताणं' । शब्द कान में पडते ही राजकुमारी सुदर्शना ऊहापोह में पड़ गयी। वह सोचने लगी कि ये शब्द मैने पूर्व में कभी सुने हैं। सोचते सोचते उसे उपने पूर्व जन्मों का स्मरण हो गया। वह उस स्मरण में खो गयी।
होश में आने पर उसने अपने माता पिता को अपने पूर्व जन्मों का हाल कह सुनाया। उसकी इच्छा के अनुसार राजा रानी ने उसके लिए भरुच जाने की व्यवस्था की। राजकुमारी सुदर्शना ऋषभदत्त सेठ के साथ भरुच पहुँची। अपने पूर्व जन्म के उपकारी मुनिराज को उसने ढूँढ लिया और उन्हें भावपूर्वक वन्दन किया। उन मुनिराज के उपदेश से उसने अश्वाबोध तीर्थ का पुनरुद्धार । किया। वहाँ चौबीस जिनालय युक्त मंदिर बनवाया। इस घटना के कारण यह मंदिर शंकुनिका विहार के नाम से प्रसिध्द हुआ।
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श्रीमुनिसुव्रत स्वामी चरित ४३
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