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गयी। उस दिव्य पायल को देखकर उसे लोभ हुआ। उसे लेकर वह तुरन्त वहाँ से निकल पड़ी और अपने महल में आ गयी।
हिंसा और चोरी के पाप का उसने कभी प्रायश्चित नहीं किया, अतः मृत्यु के बाद उसे तिर्यंच गति प्राप्त हुई। भरुच नगर के बाहर एक वटवृक्ष पर शकुनिका (चील)के रूप में उसका जन्म हुआ। वहाँ वह नर चील और अपने बच्चों के साथ रहने लगी। . एक बार नर पक्षी वहाँ से उड़कर चला गया और फिर लौट कर
कभी नहीं आया। . . अब दाना-पानी के लिए वह स्वयं बाहर जाने लगी। एक ।
बार वर्षा ऋतु में वह कहीं बाहर गयी। उस समय हवा भी जोर से . : चल रही थी। जब वह अपने घौसले की ओर लौट रही थी; उस समय एक शिकारी ने उसे तीर चलाकर घायल कर दिया; फिर भी वह किसी प्रकार अपने घौंसले तक पहुँच गयी। वह उस पेड़ के नीचे गिर पड़ी। माँ की यह हालत देखकर बच्चे भी चिल्लाने लगे। बेचारी माँ तड़पती हुई अन्तिम घडियाँ गिनने लगी।
संयोग से एक मुनि की नजर उसपर पड़ गयी। मुनि को उस पर दया आ गयी। उसके कल्याण के लिए उन्होंने उसे नवकार... मन्त्र सुनाया और उसी समय उसके प्राण पखेरू उड गये। नवकार
मन्त्र और चार शरणों का प्रभाव अचिन्त्य है। इनके प्रभाव से उस * चील ने पुनः मनुष्य गति प्राप्त की।
वह सिंहलद्वीप केराजा चन्द्रगुप्त के यहाँ उत्पन्न हुई। रानी चन्द्रलेखा उसकी माता थी। राजाने उसका नाम सुदर्शना रखा। . वह रूप गुण संपन्न थी और धर्म प्रेम उसकी नस नस में प्रवाहित . था। उसकी वाणी में मधुरता थी।
श्रीमानसबत स्वामी Shree Strdhamaswami Gvanbhandlunara. Surat
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