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रोमांचित हो गया और अपने पांवों को कुछ मोड कर सीर झुकाकर प्रभू बार बार प्रमाण करने लगा ।
उसी समय इन्द्र महाराज ने प्रभू से पुछा - 'हे नाथ! आप साठ योजन लंबा विहार करके यहाॅ पधारे है और प्रवचन दिया है । आपके प्रवचन से वास्तव लाभान्वित कौन हुआ है ? कृपया स्पष्ट किजिये ।
प्रभुने उत्तर देते हुए कहा -व' हे इन्द्र । समवसरण के बाहर 11 जो अश्व सिर झुकाकर खड़ा है; वही मेरे उपदेश से लाभान्वित हुआ है। उसके लिए ही मैंने इतना लंबा विहार किया है।
प्रभू के उत्तर से सब चकित रह गये । राजा जितशत्रु भी आश्चर्य चकित हो गया। उसने अपनी जिज्ञासा पूरी करने के लिए प्रभू से पूछा - 'हे प्रभो! कृपा करके आप हमें इस अश्व का पूरा हाल सुनाइये । इस अश्व को ही आपका उपदेश क्यों लगा? किस कारण से इसे अश्व का जीवन प्राप्त हुआ?'
तब प्रभु से सब बातें स्पष्ट करते हुए कहा -
देव दुर्लभ मनुष्य जन्म प्राप्त करने के बाद भी जो जीव धन-दौलत तथा मिथ्या प्रतिष्ठा आदि के माध्यम से संस्कृति और धर्म से भ्रष्ट होता है, वह मृत्यु के पश्चात् दुर्गति में ही जाता है ।
पद्मिनीखंड नगर में जिनधर्म नामक श्रावक रहता था । वह यथानाम तथा गुण था। वह स्वभाव से सरल, सत्यवादी, ईमानदार और एक पत्नीव्रत का धारक था । उसका दिल दिया और दान से परिपूर्ण था । वह दुश्मन को भी नेक सलाह देता था । इसी कारण वह राजमान्य और लोकमान्य बन गया था ।
उसी नगर में शैवधर्मी सागरदत्त सेठ भी रहता था। वह
श्रीमुनिसुव्रत स्वामी चरित ३६
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