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पद्मसरोवर, रत्नाकर, देव विमान और अनमोल रत्नों का ठेर देखा...
और अन्त में देखी निर्धूम आग। ये सब सपने दर्शनीय व विलोभनीय थे।
स्वप्नदर्शन के पश्चात् रानी जाग गयी। इन सपनों को उसने अपने जीवन में देव की कृपा, गुरु का आशीर्वाद और धर्माराधना का फल माना। वह तुरंत महाराज सुमित्र के पास गयी
और उन्हे अपने सपनों का हाल कह सुनाया। राजा ने स्वप्न पाठकों को आमंत्रित किया। उनसे स्वप्न का फल जानकर अत्यंत हर्ष हुआ। स्वप्न दर्शन का फल था, एक ऐसे पुत्ररत्न का जन्म, जो ... तीनो लोकों में वन्द्य हो।
स्वप्न फल के ज्ञान से हर्षित रानी सावधानीपूर्वक गर्भ का पालन करने लगी। गर्भकाल पूरा होनेपर ज्येष्ठ कृष्णा अष्टमी को .. जब चन्द्र श्रवण नक्षत्र में था, तब उसने एक पुत्ररत्न को जन्म दिया। पुत्र के जन्म से तीनो लोकों मे हर्ष छा गया। नारकी जीवों के को भी क्षणभर के लिए सुखद अनुभव हुआ। यह तीर्थंकर : मुनिसुव्रत स्वामी का जन्म कल्याणक था। अपराजित विमान से . उनका च्यवन हुआ और राजगृही में जन्म।
प्रभु का जन्म होते ही छप्पन्न दिक्कुमारिकाएं माता के पास पहुँची और उन्होंने सूति कर्म किया। उन्होंने प्रभू के आगे नाटक, । नृत्य, संगीत आदि कार्यक्रम प्रस्तुत किये। प्रभु का दर्शन करके ।
उन्होंने हर्ष का अनुभव किया और अन्त में हमें भी तीर्थंकर की - माता बनने का अवसर प्राप्त हो, ऐसी भावना करती हुई वे अपने
अपने स्थान पर चली गयीं। . प्रभु के जन्म के समय इन्द्र महाराज का सिंहासन हिल उठा;
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श्रीमुनिसुव्रत स्वामी चरित २२ ami-Cyanbhandar-bineray-Suret
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