SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ और पुण्यकर्म की अभिवृद्धि हेतु वे देववन्दन, पूजन आदि आराधना भावोल्लास पूर्वक किया करते थे। उनकी धर्माराधना प्रशंसनीय, अनुमोदनीय व अनुकरणीय थी। राजा सुमित्र राज्य-संचालन, प्रजापालन, सज्जन-सत्कार और दुष्ट-दलन आदि के लिए ख्याति प्राप्त था। वह प्रजाजनों से अल्प कर भार लेता था, पर प्रजाहित के कार्य अधिक किया करता था। द्विपद-चतुष्पद आदि प्राणियों की रक्षा व सुख सुविधा के लिए वह प्रयत्नशील रहता था। वह स्त्री जाति का सम्मान करता था। स्त्री का अपमान करनेवाले को वह कड़ा दंड देता था। धर्मप्रम उसकी रग रग में समाया हुआ था। उसकी रानी का नाम पद्मावती था। अपनी सुन्दरता में वह कामदेव की पत्नी रति से मुकाबला करती थी। उसकी आँखें हरिणी की आँखों के समान थी। उसका मुख चन्द्रमा के समान सुन्दर था और ललाट सूर्य नारायण के समान तेजस्वी था। उसकी आँखें निर्विकार थी, वाणी मधुर थी और उसके हाथ परोपकारी थे। उसका हृदय दया से परिपूर्ण था। पातिव्रत्य धर्म उसका प्राण था, शील मर्यादा उसकी चूनडी थी और सत्यवचन ही उसके कंकण थे। वह अपने दाम्पत्य जीवन का निर्वाह अपने पति के साथ सुखपूर्वक करती थी। एक बार श्रावण शुक्ला पौर्णिमा की रात के अंतिम प्रहर में उसने चौदह शुभ स्वप्न देखे। सर्व प्रथम उसने मदोन्मत हाथी देखा और उसके बाद हृष्ट-पुष्ट सफेद बैल। इसी क्रमसे उसने केसरी सिंह, गजाभिषिक्त लक्ष्मी देवी, पंचरंगी पुष्पमाला, पूर्णचंद्र, अत्यंत प्रकाशमान सूर्य, रंगबिरंगी इंद्रध्वजा, स्वच्छ जल से परिपूर्ण कलश, श्रीमुनिसुव्रत स्वामी चरित २१ Shree Sudharmaswami-Gyanbhandar-umara Surat............ - www.umaragyanbhandar.com
SR No.034967
Book TitleMunisuvrat Swami Charit evam Thana Tirth Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnanandvijay
PublisherRushabhdevji Maharaj Jain Dharm Temple and Gnati Trust
Publication Year1989
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy