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प्रभु का जन्म एवं दीक्षा जीव मात्र का कल्याण करनेवाली श्री मुनिसुव्रत स्वामी परमात्मा की आनन्द-मंगल वर्धिनी, तथा सुख-शान्ति कारिणी, · समाधि प्रदात्री, धर्मदशना को मैं भक्ति-भावपूर्वक वन्दन करता हूँ। मेरी यह कामना है कि भवान्तर में भी जिनवाणी मेरा कल्याण करे।
___ भारतवर्ष में साढे पच्चीस देश आर्य देश माने गये हैं, उनमें मगध देश का स्थान सर्वोपरि है। उस काल में मगध देश अपनी विशालता, भव्यता और धार्मिकता के लिए तीनों लोक में प्रसिध्द था। देवलोक के देव भी इसकी प्रशंसा करते नहीं अघाते थे। चौबीसों तीर्थकर परमात्माओं के पाँचों कल्याणक उत्तरापथ में ही हुए है। बारह चक्रवर्ती और नौ वासुदेव भी उत्तरापथ में ही हुए हैं। और मगध देशभी उत्तरापथ में ही तो हैं।
__ उस काल में उस समय में मगध देशान्तर्गत राजगृही नगरी में : 1 हरिवंश कुलोत्पन्न राजा सुमित्र राज्य करता था। राजगृही के लोग अपने रूप गुण में देवताओं को भी मात करते थे। अर्थ और काम पुरुषार्थ के सेवन में भी वे सदा धर्म का ध्यान रखते थे। वहाँ के लोग
व्यापार-धंधे में, लेन-देन में, हिसाब-किताब में और नाप-तौल में .: किसी को ठगते नहीं थे। वे ईमानदार थे और चरित्रवान भी। .. अपनी न्याय-निती के लिए वे समस्त भारतवर्ष में विख्यात थे। - गृहस्थाश्रम के पालन से उपार्जित पापकर्म की आलोचना
हेतु वे सामायिक प्रतिक्रमण-पौषधादि धर्मक्रियाओं में रत रहते थे
श्रीमुनिसुव्रत स्वामी चरित २० Imaswami-dyambhandar-bimaray-Sural