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शीतलानाथ परमात्मा के समय में घटी।
इस हरि राजा से हरिवंश की उत्पत्ति हुई। हरिवंश में हरि के पश्चात् ऐसे अनेक राजा हुये जिन्होंने संयम ग्रहण करके धर्म की आराधना की और केवल ज्ञान प्राप्त कर मोक्ष गमन किया।
__ वर्तमान चौबीसी के बीसवें तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रत स्वामी परमात्मा भी इसी हरिवंश में उत्पन्न हुये हैं। वे गर्भ से मति-श्रुत अवधिज्ञान के धारक थे। दीक्षा लेते ही उन्हें चौथा मनःपर्यय ज्ञान हुआ था और केवल ज्ञान पाने के पश्चात् उन्होंने धर्मतीर्थ की स्थापना की थी।
महावीर वाणी
जरा जाब न पीडेइ बाही जाब न बटइ। जाविन्दिया न हायन्ति तार धम्म समायरे।।
जब तक बुढापा नही सताता, जब तक रोग नही बढ़ता .. और जबतक इन्द्रियाँ कमजोर नहीं होती; तब तक धर्म का आचरण कर लेना चाहिये। बुढापा आने पर, शरीर रोग जर्जर : होने पर और इंद्रिया ढीली ढाली होने पर धर्म का आचरण असंभव है।
जा जा बच्चा रयणी न सा परिनियत्ता। महम्मं कुणमाणस्स बफला जन्ति राइबो।।
जो जो रात बीत जाती है, वह फिर नही लौटती। जो मनुष्य अधर्म के आचरण में लगा रहता है; उसके लिए सब रातें निष्फल होती है।
श्रीमुनिसुव्रत स्वामी चरित ८
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