SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ का नाम हरिणी था। फिर उनसे आकाश में रहकर यह घोषणा कि - "हे नगरजनो! तुम्हारा राज्य अबतक राजा रहित था; पर अब मैं तुम्हारे लिये राजाले आया हूँ। इसी नगर के बाहर उद्यान में एक युगल पेड के नीचे आराम कर रहा है। पुरुष का नाम हरि और स्त्री का नाम हरिणी है। दोनो गौरांग हैं और प्रकाशमान भी है। पुरुष के हाथ पैरों में चक्र, गदा, तोरण, आदि शुभचिन्ह हैं। वे दोनो आजानुबाहु हैं और आँखें कमल के पत्तों के समान दीर्घ हैं। पुरुष शरीर पर श्रीवत्स, मत्स्य, कलशादि चिन्ह भी है। उसी पुरुष में राज्य संचालन करने की योग्यता है। तुम सब लोग उसे नगर का राजा बना दो। यद्यपि उसके साथ कल्पवृक्ष है; पर तुम लोग उसे मदिरा-मांसादिके स्वाद से भी परिचित करा दो। नगरजनों ने उस देववाणी का पालन किया। वे हरि और हरिणी को गाजे-बाजे के साथ नगर में ले आये और उनका राज्याभिषेक कर दिया। अब राजा-रानी दोनो सुखपूर्वक रहने लगे और मदिरा-मांसादि तथा विषयभोगों का रुचिपूर्वक सेवन करने लगे। धीरे-धीरे उनका पुण्यकर्म घटता गया और पापकर्म बढ़ता गया। अंत में मरणोपरान्त वे नरक गति में उत्पन्न हुए और दारुण वेदना भोगने लगे। उनकी इस स्थिति से उस देव को परम संतोष हुआ। उसके खुशी का पार न रहा। एक युगलिक का कर्मभूमि में आगमन और उनके द्वारा राज्य संचालन तथा मदिरा-मांसादि का सेवन ये सब बातें एक बहुत बड़ा आश्चर्य है। ऐसा कभी नहीं होता; पर कर्म की विचित्रता के कारण ही यह अद्भुत घटना दसवें तीर्थंकर श्री .. श्रीमुनिसुव्रत स्वामी चरित७ Shree Sudharthaswami Gyanbhandari Umera-Surat--. ANAuremaragyanbhandar.com
SR No.034967
Book TitleMunisuvrat Swami Charit evam Thana Tirth Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnanandvijay
PublisherRushabhdevji Maharaj Jain Dharm Temple and Gnati Trust
Publication Year1989
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy