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निन्दन्तु नीतिनिपुणा यदि वा स्तुवन्तु,
लक्ष्मी समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम् । अद्यैव वा मरणमस्तु युगान्तरे वा,
न्यायात्पथः प्रविचलन्ति पदं न धीराः॥१॥ अब हम यहाँ जयन्तीनायक का वंश-परिचय देते हुए आगे बढ़ेंगे । राजस्थान में भरतपुर नामका अग्रगण्य संस्थान है। मेवाड़ और बून्दी के पश्चात् इसीका नाम गौरव के साथ लिया जाता है। भरतपुर रियासत का प्रत्येक ग्राम एक विशाल युद्ध का इतिहास है। कौन अनभिज्ञ होगा जो भरतपुर पर हुए अंग्रेजों के आक्रमणों को नहीं जानता हो । आज भी उसकी सिकता-शीत चतुर्भित्ति में अंग्रेजी-मांचे में ढले तोपों के गोले यथावत् मिल जायँगे जो इसके गौरव आत्मबल वैभव का इतिहास तथा इसकी वीरता का आख्यान अपने वक्ष में छिपाये अक्षत नीरव पड़े हैं। इसी भरतपुर नगर में हमारे जयन्ती-नायक का अवतरण पौषशुक्ला सप्तमी गुरुवार विक्रम सं० १८८३ तदनुसार दिसम्बर ३ सन् १८२७ को हुआ। आपके पिता का नाम ऋषभदास तथा माता का नाम श्रीकेशरीदेवी था । ऋषभदासजी जैन उपकेशवंशीय पारखगोत्र के थे। चन्देरी के राजा वीरवर खरहत्थसिंहजी जो बारहवीं शताब्दी में हो चुके हैं, उनके प्रपौत्र पासुजी के ये वंशज थे । इनका जन्म नाम 'रत्नराज' था । इनके ज्येष्ठ भ्राता ' माणिकलाल' तथा अनुजा 'प्रेमवती' थी।
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