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________________ सुप्रसिद्ध विद्वानों और श्रीमानोंके अभिप्राय । [ ७९ २९- बाबू लालचन्दजी एडवोकेट- तथा पं० उग्रसेनजी - वकील रोहतक - आपका साहस प्रशंसनीय है । विरोधका मुकाबला दृढ़ता के साथ करें । मरणभोजकी प्रथाका इसी प्रकार विनाश होगा । 1 ३० - मा० उग्रसेनजी मंत्री परिषद परीक्षाबोर्डअब हमारे यहां तो मृत्युभोजको कोई जानता ही नहीं है। जहां इसका रिवाज है वहां भी यह शीघ्र ही मिटना चाहिये। पंच लोग आपकी परीक्षा लेंगे, इसलिये होशयार रहना । ३१ - पं० अजितप्रसादजी सब जज, एडवोकेट लखनऊ - मरणभोजकी प्रथा गरीबीमें तो जीवित मनुष्योंको यमराजके दर्शन करा देती है, संसार नरक होजाता है, आत्मघात मुक्ति-स्वरूप मालूम पड़ने लगता है। यह प्रथा घोर कष्टप्रद, अत्यन्त हानिकर और हिंसात्मक है । समाजका मुख्य कर्तव्य है कि इस भयंकर नाशकारी प्रथाको शीघ्र ही बंद कर दे । धार्मिक तत्व तो इस प्रथामें कुछ है ही नहीं । ३२ - रायसाहब नेमदासजी शिमला जैन शास्त्रों में मरणभोजका कोई उल्लेख या विधान नहीं पाया जाता । जैनाचारकी दृष्टि से भी मरणभोज उचित नहीं है । जैन समाज के लिये यह हानिकर प्रथा है । आपने अपने पिताजीका मरणभोज न करके समाजके सामने अच्छा आदर्श उपस्थित किया है । . ३३ - बा० फतहचन्दजी सेठी अजमेर- यहां नुक्ता करने की कोई अवधि निश्चित नहीं है। कई लोग मृत्युके १५-२० वर्ष बाद भी नुक्ता करते हैं । प्रायः यहां मरणकी तीन ज्योनारें Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034960
Book TitleMaran Bhoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherSinghai Moolchand Jain Munim
Publication Year1938
Total Pages122
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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