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________________ ७८ ] मरणभोज । जैनों में प्रचार हुआ। जैन दृष्टिसे मरणभोज मिथ्यात्व कहा जासक्ता है। इस तंगीके जमाने में यह प्रथा जितनी जल्दी बन्द हो उतना ही अच्छा है । हमारी बुढेलवाल जाति में यह प्रथा प्रायः उठ गई है । करुणकथायें तो रोज देखने सुनने को मिलती हैं । २६ - भारत के प्रसिद्ध कहानीकार बा० जैनेन्द्रकुमारजी देहली- मरणभोजकी उत्पत्तिके विषय में कुछ नहीं कह सकता । हां, मरणभोज करनेकी बाध्यता हरेक धर्माचारके विरुद्ध है । जैनाचार यदि धर्माचार है तो उसके भी विरुद्ध ही है । मरणभोजकी प्रथा सर्वथा अनावश्यक है इसे बंद कर देना चाहिये । - यहां पर भी कुछ प्रथा है, पर उसकी अनावश्यकता पर जनमत जगता दीखता है । २७ - श्री० बैरिष्टर जमनाप्रसादजी सब जजहिन्दू पड़ौसियोंके असर से जैनोंमें मरणभोज आया है । यह प्रथा कतई उचित नहीं है । यह अनावश्यक हैं और इसे सर्वथा बन्द कर देना चाहिये । एक दो घटनायें क्या लिखें, रोज ही घटनापर 'घटनायें होती हैं। सैकडों घर बर्बाद होगये, पर हम क्यों अगुवा बनें, इस भय से लोग करते ही चले जाते हैं । आपने अपने पिताजीकी तेरई न करके जो साहस व दूरदर्शिता दिखाई है उसके लिये वधाई ! 1 २८ - ला० तनसुखरायजी, मंत्री मा० दिगम्बर जैन 'परिषद देहली - हर्ष है कि आपने अपने पिताजीका नुक्ता नहीं किया । . इस घातक रूढिका शीघ्र ही नाश होना चाहिये । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034960
Book TitleMaran Bhoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherSinghai Moolchand Jain Munim
Publication Year1938
Total Pages122
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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