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________________ सुप्रसिद्ध विद्वानों और श्रीमानोंके अभिप्राय। [७७ २२-रा० ब० वाणिज्यभूषण सेठ लालचन्दजी सेठी उज्जैन-जनोंमें मरणभोजकी प्रथा बहुत समयसे है। मैंने जहांतक स्वाध्याय किया है वहांतक मैं यह विना संकोच कह सक्ता हूं कि जैन शास्त्रोंसे इसकी कुछ भी पुष्टि या सिद्धि नहीं होती है। और नुक्ते का रिवान जैन तथा जैनेतरोंमें एकसा ही देखा जाता है। मेरी रायमें मरणभोजकी बिलकुल आवश्यक्ता नहीं है । इस कुप्रथाके कारण कई विधवाओंको अपनी रही सही जीविकाकी आधारभूत पूंजीसे भी हाथ धोना पड़ता है, दरदरकी भिखारिणी बनना पड़ता है। मैं तो इस प्रथाको सर्वथा घातक एवं भनुपयुक्त ही समझता हूँ। २३-साहू श्रेयांसप्रसादजी रईस नजीबाबादअपनी माताजीके मरणभोजकी कल्पना तो मैं स्वप्नमें भी नहीं कर सकता। यह प्रथा हानिकर है। हमारे प्रान्तमें अग्रवाल जैनोंमें मरणभोज किसीके यहां नहीं होता। २४-दानवीर श्रीमंत सेठ लखमीचंदजीभेलसाहमने अपनी माताजीकी स्वयं तेरई मादि नहीं की। परिषदके बाद यहां के लोग इस घृणित प्रथाको 'छोड़ते जारहे हैं। इस प्रथासे समाजकी भारी हानि हुई है। इसका समूल नाश होना चाहिये । कुछ समाजसेवक विद्वानोंके विचार. २५-बाबू कामताप्रसादजी सं० वीर और जैन सिद्धान्त भाष्कर-जिस समय मट्टारकोंने वैष्णवोंकी नकल करके श्राद्ध तर्पणादिका विधान अपने शास्त्रोंमें किया तब ही से इसका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034960
Book TitleMaran Bhoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherSinghai Moolchand Jain Munim
Publication Year1938
Total Pages122
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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