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________________ ७६ ] मरणभोज । ओर विधवा स्त्री, बुड्ढी माता और कुटुम्बीजन रो रहे हों, और दूसरी ओर पंचलोग माल मलीदा उड़ा रहे हों, यह कैसी निष्ठुरता है । लोग मृत कुटुम्बियोंको शांति देने आते हैं या उन्हें बर्बाद करने ? समाजको चाहिये कि वह असहाय विधवा और दुःखी कुटुम्बियों के प्रति समवेदना प्रगट करे, उनकी सहायता करे और उन्हें सान्वना दे, किन्तु ऐसा न करके उसके घर लोटा भरके पहुंच जाना और लड्डू उड़ाना कहांकी मानवता है? सचमुच ही मरणभोजकी प्रथा मिथ्याविकी जड़ से उत्पन्न हुई है । इसलिये निरर्थक एवं हानिकारक इस प्रथा को उखाड़ कर फेंक देना चाहिये । कुछ श्रीमानोंके विचार P २१- रा० भू० रा० ब० दानवीर सेठ हीरालालजी इन्दौर - जैन समाज में मरणभोज अब आवश्यक नहीं है, कारण कि विधवायें और असमर्थ लोग मरणभोजके कारण ही जेवर बेचकर मकान गिरवी रखकर और कर्ज लेकर आगामी जीवनको संकटमय बना लेते हैं । इस आर्थिक संकटके जमाने में तो समाजकी परिस्थिति इसी प्रथाके कारण कल्पनातीत भयानक होगई है । भतः इस प्रथाको सर्वथा बंद कर देना ही इष्टकर है । इन्दौर मरणभोजपर सरकारी प्रतिबंध भी है, जिससे १०० आदमि - योंका ही नुक्ता होसकता है । किन्तु यह प्रथा धर्मके नामपर रथ यात्राका रूप धारण करती जा रही है। मरणभोजसे सम्बन्ध रखनेवाली कई करुणाजनक घटनायें यहांपर हुई हैं, जिनके फलस्वरूप विघवाओं और असमर्थोकी दशा बड़ी दयनीय होगई है । I Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034960
Book TitleMaran Bhoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherSinghai Moolchand Jain Munim
Publication Year1938
Total Pages122
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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