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________________ सुप्रसिद्ध विद्वानों और श्रीमानके अभिप्राय। [६९ उसका प्रचार कबसे है ? २-क्या मरणभोज करना जैनशास्त्र और जैनाचारकी दृष्टिसे उचित है ? ३-क्या जैन समाजमें मरणभोजका होना अभी भी मावश्यक है और उसे सर्वथा बन्द कर देना इष्ट नहीं है ? ४-आपके यहां जैन समाजमें मरणभोजकी प्रथा कैसी है ? ५-मरणभोजसे सम्बन्ध रखनेवाली कुछ करुणाजनक घटनायें भी लिखनेकी कृपा करें। यह पत्र पुराने और नये विचारके-स्थितिपालक और मुधारक सभी विद्वानों तथा श्रीमानोंके पास भेजे गये थे, किन्तु जो मरणभोजके पक्षपाती हैं, जो मरणभोजमें ही धर्मकी पराकाष्ठा मानते हैं और तमाम धर्म कर्मको मरणभोजमें ही निहित मानते हैं उब पण्डितोंने तो कोई उत्तर देने तकका कष्ट नहीं किया, कारण कि उनके पास मरणभोजको योग्य सिद्ध करने के लिये न तो कोई शास्त्रीय प्रमाण है और न कोई बुद्धिगम्य तर्क । तथा वे उसका विरोध इसलिये नहीं कर सकते कि उनमें इतना साहस नहीं और न वे अपने पक्षको छोड़ ही सकते हैं, इसलिये उनने किसी प्रकारका भी कोई मनुकूल प्रतिकूल उत्तर नहीं दिया। किन्तु जिनमें साहस है, विवेक है, दूरदर्शिता है और जो - नमानेकी गति-विधिको जानते हैं उनने मुझे पत्रका उत्तर दिया, उनमेंसे कुछका सारांश मात्र यहाँ प्रगट किया जाता है। कुछ विद्वानोंके विचार १-५० चैनसुखदासजीन्यायतीर्थ-संपादक जैनदर्शन तमा जैनबंधु जयपुर लिखते हैं:-मरणमोजकी प्रथा प्राचीन नहीं है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034960
Book TitleMaran Bhoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherSinghai Moolchand Jain Munim
Publication Year1938
Total Pages122
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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