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________________ ३८] मरणभोज । अत्याचार और भापत्तिग्रस्तोंकी बर्बादीको स्पष्ट बताती हैं। फिर भी जो लोग कहते हैं कि मरणभोज करनेमें कोई जबर्दस्ती नहीं करता, यह तो मनका सौदा है, दश पांच भादमियोंको जिमाकर ही रश्म: मदा कर लेनी चाहिये, वे समाजको धोखा देते हैं और इस , ! अत्याचारको ढकनेका असफल प्रयत्न करते हैं। उन्हें तथा समाजको मांखें खोलकर देखना चाहिये कि मरणभोजिया लोग कैसी कैसी स्थितिमें मरणभोज कराते हैं। ऐसे मरणभोजोंमें लड्डू उड़ानेको तो नारकी और राक्षस भी तैयार नहीं होंगे, जैसे मरणभोजोंको समाजका बहु भाग उड़ाता है। यदि बिशेष खोज की जाय तो इन घटनाओंसे भी भयंकर घटनायें मिल सकती हैं । क्या इन्हें जानकर मन भी जैन समाज इस पापका त्याग नहीं करेगी ? सुप्रसिद्ध विद्वानों और श्रीमानोंके अभिप्राय । __ यद्यपि मरणभोजकी अशास्त्रीयता, मनावश्यकता और भयंकरताको हमारे पाठकगण भली भांति समझ गये होंगे, फिर भी मैं मरण. भोजके संबन्धमें जैन समाज के कुछ गण्यमान्य विद्वानों और श्रीमानोंके अभिप्राय भी प्रगट कर रहा हूँ। इनसे वस्तुस्थिति कुछ विशेष स्पष्ट हो जायगी। मैंने अपने पिताजीके स्वर्गवासके बाद 'मरणमोज' न करके ' मरणभोज' पुस्तक लिखनेका निश्चय किया और इस प्रथाके संबन्धमें जैन समाजके करीब १०० गण्यमान्य विद्वानों और श्रीमानों को पत्र भेजे थे, उनमें निम्न लिखित ५ प्रश्न पूछे गये थे: १-मरणभोजकी उत्पत्ति कब क्यों और कैसे हुई तथा जैनोंमें Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034960
Book TitleMaran Bhoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherSinghai Moolchand Jain Munim
Publication Year1938
Total Pages122
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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