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मरणभोज विरोधी आंदोलन । [१५ एक रूढ़ि होगई है । इसे बन्द कर देना चाहिये । पंगत करनेकी कोई आवश्यक्ता नहीं है।
(७) सेठ चन्द्रमानजी बमराना-मैं सिंघई कुंवरसेनजीके प्रस्तावका समर्थन करता हूं, अर्थात् यह नुक्तेकी प्रथा बन्द करदी जावे।
(८) श्रीबेनीप्रसादजी-जो सेठजी साहबने कहा वही पास करना चाहिये।
(९) बाबू गोकुलचन्दजी वकील-यह लड्डुओंकी बात है, जल्दी न छूटेगी, नहीं तो यह प्रथा इतनी भद्दी है कि विना प्रस्ताव पास किये ही छूट जाना चाहिये थी। एकवार हमारे यहां ( दमोहमें ) पंचोंने एक मनुष्यसे कहा कि तुम्हें चारों पुगकी पंगत देना पड़ेगी। किन्तु समय थोड़ा था, इसलिये रात रातभर तैयारी करना पड़ी। और बेसन पीसनेवाली स्त्रियां अपना समय काटनेके लिये रातभर मानन्दके गीत गाती थीं। जरा विचारनेकी बात है कि घरमें तो मातम है, किन्तु इस भोजके पीछे मानन्दके गीत गाये जाते हैं । यह लजित करनेवाली प्रथा है।
बुन्देलखण्डके इन मुखिया श्रीमानोंके उद्गार पढ़कर किसे संतोष और हर्ष न होगा ? यदि सचमुच ही उक्त मुखिया लोग अपने बचनोंका पालन करते कराते तो कमसे कम बुन्देलखण्ड प्रान्तसे तो यह पाप कमीका उठ जाता । किन्तु बुन्देलखण्ड प्रान्तका यह दुर्भाग्य है कि वहीं मरणभोजकी अति भयंकर एवं दयनीय घटनायें होती रहती हैं।
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