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________________ ३६.] सरणमोज । स्वानुभव | कहीं पर यदि मरणभोज के लिये मृत व्यक्तिकी अमुक मायुकी हृद बांधी गई है, फिर भी उसपर चलना तो कठिन ही है। कोई व्यक्ति मरणभोज न करना चाहे तो उसकी नगरमें चर्चा होती है, उसकी बुराई की जाती है और उसपर विविध रूपमें ऐसा दबाक डाला जाता है कि उसे मरणभोज बलात् करना ही पड़ता है । मेरे जीवन में ऐसे तीन अवसर आये हैं। एक तो नवम्बर स १९२८ में मेरी माताजीका स्वर्गवास होगया था । उस समय चारों . तरफसे दबाव डाला गया था । मैं उस समय विद्यार्थी था। लोगों की बातोंमें तथा कुटुंबियोंके दबावमें व्याकर माताजीका मरणभोज करना पड़ा। यदि सच पूछा जाय तो उस समय मुझे घरके कार्य करने घरनेका अधिकार ही क्या था ? इसलिये वह मेरे द्वारा। नहीं किया गया था, फिर भी मैं डटकर विरोध नहीं कर सका । फिर नवम्बर सन् ३१ में हमारे बड़े भाई श्री० बंशीधरजीका ३२ वर्षकी आयु में ही स्वर्गवास हुआ। उस समय भी कुछ लोगोंने मरणभोज के लिये मुझे दबाया, मगर मैं दृढ़ था ! कुछ सज्जन मुझे साहस और साथ देनेके लिये भी तैयार थे। मैं इससे पूर्व ही निश्चय कर चुका था कि न तो मैं मरणभोज करूंगा और न ऐसे पापकृत्य में सम्मिलित ही होऊँगा । इसलिये मैंने सबसे दृढ़तापूर्वक कह दिया कि यह मरणभोज कदापि नहीं होगा । तब इस सम्बंध में खूब चर्चा होती रही । विरोधी चर्चा होते देखकर मैंने मुखिया लोगों से मिलना शुरू www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
SR No.034960
Book TitleMaran Bhoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherSinghai Moolchand Jain Munim
Publication Year1938
Total Pages122
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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