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________________ ३४ ] भरणभोज । -बड़ी हानि होरही है। कई जैन जातियोंने यह रूढ़ि बन्द भी कर दी है। इसलिये अपनी समानमें यह रूढ़ि बन्द करना नई बात नहीं है । इसका शीघ्र ही बन्द किया जाना जरूरी है। (२) बाबू कस्तूरचन्दजी वकील जबलपुर - यह समातेर की वर्तमान प्रवृत्तिको निन्दनीय समझकर घृणाकी दृष्टिसे देखती है, इसलिये बन्द की जावे । (३) सेठ पन्नालालजी टड़ैया ललितपुर - यह प्रथा - बहुत भद्दी है । एकवार हमारे यहां चौधरीजीके घर ऐसा मौका आ पड़ा था कि घरवाले शोकके मारे रो रहे थे, उधर भोजन करने, वालोंको सिर्फ अपनी ही चिन्ता थी । वास्तवमें यह प्रथा बहुत बुरी है । हमें उनकी बातों पर बहुत रंज होता है जो ताना मारमारकर भोजन खाते हैं । जो विपत्ति फंपा हुआ है उसके यहां भोजन करना ताना मारना है | यह सर्वथा अनुचित है 1 | (४) सेठ मूलचन्दजी बरुआसागर - सिर्फ कमीनों को खिलाना चाहिये । लोगों पर इस बातका अक्षेर न किया जावे कि इस रई नहीं दी । (५) पं० मौजीलालजी सागर- ये कैसे कठोर हृदय हैं जो कहते हैं कि दम वर्ष तकका मरणभोज न किया जाय । रे! यह तो इतनी भद्दी प्रथा है कि किसीका भी नुकता न करना चाहिये, चाहे गरीब हो या अमीर । सभीको एक तरहका व्यवहार करना चाहिये । (६) सेठ लालचन्दजी दमोह-हमारी जातिपें यह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034960
Book TitleMaran Bhoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherSinghai Moolchand Jain Munim
Publication Year1938
Total Pages122
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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