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________________ २२ ] मरणभोज । तेरहवें दिन स्वयमेव शुद्ध होजाते हैं और दानपूजादि सत्कर्म करने लगते हैं । जहां पर मरणभोजकी कतई बंदी कर दी गई है या जहां ४०४५ वर्ष के पूर्वका मरणभोज नहीं होता वहां भी तो तेरहवें दिन ( मरणभोजन करनेपर भी ) स्वयमेव शुद्धि होजाती है और वह दान पूजादिका अधिकारी होजाता है। वर्तमान में भी ऐसे घरोंमें मुनिराज आहार लेते हैं और वे लोग पूजादि करते हैं। तात्पर्य यह है कि यह कालशुद्धि है जो तेरहवें दिन स्वयमेव होजाती है। इसमें मरणभोन कार्यकारी नहीं है । शास्त्रों में भी कालशुद्धिपर ही जोर दिया है और लिखा है कि : 1 ब्राह्मणक्षत्रियविट्शूद्रा दिनैः शुद्धयन्ति पंचभिः । दश द्वादशभि: पक्षाद्यथासंख्यप्रयोगतः ॥ १५३ ॥ - प्रायश्चित्तसंग्रह चूलिका । अर्थात् ब्राह्मण शक्षिय वैश्य और शूद्र अपने किसी स्वजनके मरजाने पर क्रमसे पांच दिन, दश दिन, बारह दिन और पंद्रह दिन बीत जानेसे शुद्ध होते हैं । ( टीकाकार पं० पन्नालालजी सोनी ) इससे बिलकुल स्पष्ट है कि वैश्य लोग १२ दिन बीत जानेसे स्वयमेव शुद्ध होजाते हैं । मरणभोज आदिकी मिथ्यारूढ़ि तो डोंगी लड्डू लोलुपियों द्वारा चलाई गई है और ऐसे लोग ही इसकी पुष्टि करते रहते हैं । यहां तो मात्र १० शंकायें उठाकर ही उनका यथायोग्य समाबान किया गया है। किन्तु और भी जो भाई इस सम्बन्धमें किसी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034960
Book TitleMaran Bhoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherSinghai Moolchand Jain Munim
Publication Year1938
Total Pages122
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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