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________________ शङ्का समाधान । होता है। ऐसी स्थितिमें (तेरहवें दिन स्वयमेव शुद्धि होजानेपर ) यदि कोई मरणभोज न करे तो क्या वह अशुचिता पुनः लौटकर उसके घरमें घुस मायगी ? तनिक बुद्धिसे भी तो विचार करना चाहिये । दूसरी बात यह है कि कहीं कहींपर १०-११-१२ में दिन भी मरणभोज किया जाता है। तो क्या मरणभोजमें ऐसी शक्ति है कि वह जब भी किया जाय तभी अशुचि दूर भाग माती है ? कई जगह तो ऐसा भी देखा गया है कि एक घरमें कक मरणभोज है, सब रसोई तैयार होगई, और भाज रात्रिको उसी घरमें किसी दूसरे आदमीकी मृत्यु होजाती है। फिर भी उसे फूंक कर दूसरे दिन ही मरणभोज किया जाता है और शुद्धिके ठेकेदार दयाहीन जैनी वहां जीमने चले जाते हैं। मैं पूछता हूँ कि क्या वहाँ पर अशुचिता नहीं लगती ? क्या अपवित्रतामें ऐसा विभाग हो सकता है कि यह तो अमुक भादमीके मरणकी अपवित्रता थी जो दूर होगई, और अब दूसरेकी प्रारम्भ होती है जो हमारे लड्डुओं पर असर नहीं कर सकती ? इसे स्वार्थ, गृद्धपन या लड्डूभक्तिके सिवाय और क्या कहें ? पाठक मागेके प्रकरणोंमें ऐसी घटनाभोंको देखेंगे। एक बात और भी है कि कई जगह तेरहवें दिन, कई जगह महीने दो महीने, वर्ष दो वर्ष या बारह वर्ष बीत जानेपर भी मरणमोज किया जाता है। ऐसे कई उदाहरण मेरे पास मौजूद हैं मौर समाज भी जानती है । तब क्या उन लोगोंको इतनी लम्बी अवधितक अशुद्ध ही माना जाता है ? नहीं, वे मरणभोज न करनेपर मी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034960
Book TitleMaran Bhoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherSinghai Moolchand Jain Munim
Publication Year1938
Total Pages122
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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