________________
समदत्ति और लान। [२३: तरहकी शंका करेंगे उनका मैं यथाशक्य समाधान करने के लिये तैयार हूं। मैं देखता हूं कि समाजमें मरणमोजके विषयमें प्रायः ऐसी या इस प्रकारकी ही शंकायें बहुधा की जाती हैं जिनका उल्लेख
और समाधान किया जाचुका है। आशा है कि इनसे मरणभोज भोजियोंका कुछ समाधान अवश्य होगा ।
समदत्ति और लान। जैन समाजके लिये यह दुर्भाग्यकी बात है कि उसके पीछे भनेक विनाशक रूढ़ियाँ लगी हुई हैं। जिस 'मरणभोजके विषयमें मैं अभी लिख भाया हूँ उतने मात्र हीसे समानका छुटकारा नहीं होने पाता; किन्तु कई प्रांतोंमें मरणोपलक्षमें लान भी बांटी जाती है। और इसका अधिकतर रिवाज़ खण्डेलवाल जैनोंमें है। दूसरी कई जैन जातियोंमें भी इसका रिवाज़ है। इस रिवाजने भी जैन समाजकी खूब दुर्दशा की है । इसार भी दुःख तो इस बातका है कि इसे हमारे कुछ मरणभोजिया पण्डित धर्मका अङ्ग और समदत्तिका रूप बताते हैं, जिससे भोली जनता उसे नहीं छोड़ सकती।
हमारे कई पाठक संभवतः लान' को नहीं जानते होंगे। जब कोई व्यक्ति मर जाता है तो उसके उपलक्ष्य में कई स्थानोंपर वर्तन मादि बांटनेका रिवाज है। उसे लान (लाण या लानी-लाणी) कहते हैं । इस मिथ्या वाहवाहीमें हजारों रुपया बर्बाद किये जाते हैं। गरीबोंको भी देखादेखी यह कार्य करना पड़ता है और वे ऐसा करके सदाके लिये मिट जाते हैं।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com