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________________ १८] मरणमोज। जिनके पास नहीं है उनसे जबर्दस्ती कौन करता है ? गरीब लोग मात्र अपने कुटुम्बीजनोंको या पांच पंचोंको जिमा दें तो क्रिया हो जाती है। यह तो अपनी अपनी शक्तिके मुताबिक करना चाहिये। इसमें क्या हर्ज है ? समाधान-ऐसी दलीलें कट्टर स्थितिपालक पण्डितोंके मुंहसे भी सुनी जाती हैं। कितने ही मुखिया पंच लोग भी ऐसा ही कहते सुने गये हैं। किन्तु यह मात्र शब्दछल है। कारण कि किसी भी रूपमें ऐच्छिक या अनैच्छिक मरणभोजकी प्रथा चालू रहनेसे यह भयंकर अत्याचार नहीं मिट सक्ता । शक्ति अशक्ति तथा इच्छा मनिच्छाकी बातें करनेवाले लोग उस मृत व्यक्ति के कुटुम्बको इतना शर्मिन्दा भौर विवश बना देते हैं कि गरीबसे गरीब लोगोंको भी मरणभोज करना ही पड़ता है। जो मरणभोज नहीं करता उसे बद. नाम किया जाता है, उसके भागे पीछे बुगहयाँ की जाती हैं, विविध करानायें की जाती हैं, असहयोगकी धमकी दी जाती है, बहिष्कारका भय दिखाया जाता है, विवाह-शः दियोमें अड़चनें पैदा की जाती हैं और इस तरह मज़बूर कर दिया जाता है कि घरमें कलके लिये खानेको न होनेपर भी मरणभोज करना पड़ता है। कहीं कहीं तो ऐसा भी रिवाज़ है कि जब मरणभोज करनेबालेको भारी व्याज देने पर भी उधर रुपया नहीं मिलता तब पंच लोग उससे दण्डस्वरूप चिट्ठी लिखवा लेते हैं । जिसका अर्थ यह है कि गांवके लोग तुम्हारी शादी आदिमें वेवल इसी शर्त पर शामिल होंगे जब कि तुम माने फार चढ़े हुये मौसरका व्याज प्रतिमास ५) के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034960
Book TitleMaran Bhoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherSinghai Moolchand Jain Munim
Publication Year1938
Total Pages122
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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