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________________ बका समाधान। हिसाबसे पंचोंकी पूंजीमें जमा कराते रहोगे। ऐसा मनिवार्य मरणभोजका कानून कई गांवोंमें पाया जाता है। तब फिर गरीबोंकी मर्जी पर छोड़नेकी बात तो सर्वथा असत्य और छलपूर्ण है। (८) शङ्का-यदि मरणभोज नहीं किया गया तो जेनेतर समाज हमसे घृणा करेगी और हमें नीच मानेगी। समाधान-यह भय भी व्यर्थ है। और संभवतः इसी भयको लेकर ही जैन समाजमें मरणभोजका पारम्भ हुभा हो। किन्तु यह प्रबल मान्दोकनके साथ बंद किया जासकता है। और सर्वत्र ही मरणमोजके बन्द होनेपर तथा जेनेतर जनताको यह मालूम होजाने पर कि मरणभोज जैनधर्मके विरुद्ध है-कोई भी विरोध नहीं करेगा। जैन लोग हिन्दुओं के देवी देवताओंको नहीं पूजते, उनकी तरह श्राद्धादिक नहीं करते और उनके आचार विचारसे जैनोंका आचार विचार भिन्न ही रहता है। ऐसी स्थितिमें जैनेतर लोग जैनोंसे किसी प्रकारकी घृणा नहीं करते । इस प्रकार जैन समाजमें सार्वत्रिक मरणभोज बन्द होजानेपर कोई किसी प्रकारकी घृणा नहीं करेगा। अभी भी जो लोग मरणमोज नहीं करते या जिन आमोंमें ४० वर्षसे कम मायुवालोंका मरणभोज पंचायतने बन्द कर दिया है वहांपर जैनेतर जनता जैनोंसे घृणा नहीं करती। कारण कि वह जानती है कि इनकी समाजको यह कार्य मंजूर नहीं है और यह इनके धर्मके खिलाफ है। तब घृणादिका कोई प्रश्न ही नहीं रहेगा। दूसरी बात यह है कि किसीके भयसे हमें धर्मविरुद्ध और बुरे कार्य नहीं करना चाहिये। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034960
Book TitleMaran Bhoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherSinghai Moolchand Jain Munim
Publication Year1938
Total Pages122
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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