SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शङ्का समाधान। है ? और फिर मरणभोनके भयंकर परिणामको देखते हुये मृत व्यक्तिकी मज्ञानमयी इच्छाकी पूर्ति क्योंकर करनी चाहिये ? विवेक मी तो कोई वस्तु है। प्रत्येक कार्य में उसका उपयोग करना चाहिये । (६) शंका-मरणभोजके समय भग्ने नगर और बाहरके भी लोग आकर एकत्रित होते हैं, उनसे दुःख हकका होता है और परिचय तथा सहानुभूति भी बढ़ती है। समाधान-परिचय और सहानुभूतिके तो और भी अनेक भवसर तथा साधन मिल सकते हैं तब इस राक्षसी रूढ़ि के नामार क्यों ऐसी आशा रक्खी जाती है ? रही लोगोंके एकत्रित होनेकी बात, सो जिसे सच्ची सहानुभूति होगी वह मरणभोज न होनेपर भी दुःखके अवसरपर आ जायगा और सच्ची समवेदना प्रगट करेगा। किन्तु जो लड्डुमोंके निमित्त से ही दौड़े आते हैं, उन स्वार्थी लोगोंकी बनावटी सहानुभूतिसे भी क्या लाभ ? उनकी सहानुभूति दुखियासे नहीं किन्तु लड्डुओंसे होती है । अन्यथा क्या कोई बतायगा कि कभी मरणभोज-भोजियों ने उस विचारी विधवांसे पूछा भी है कि तूने मरणभोजका प्रबन्ध कहांसे किया ? गहने और मकान बेचकर अब क्या करेगी ? तेग और तेरे बच्चों का पालन कैसे होगा ? जब मावश्यक्ता पड़े इमरी मदद करेंगे । इत्यादि । भा, जो लोग रक्तके लड्डू खाते हैं उनमें इतनी मानवता माये भी कहांसे ? वे तो उल्टे उस विश्वाके मानको कुर्क कराने, विस्वाने और उसे मिटाने में शामिल हो जाते हैं। (७) शंका-जिनके पास धन है वह माणभो न करें, और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034960
Book TitleMaran Bhoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherSinghai Moolchand Jain Munim
Publication Year1938
Total Pages122
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy