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मरण मोज ।
सकता है। वर्तमान में जिन प्रान्तोंमें शराबका पीना कानूनन बन्द हुआ और होरहा है बहांके पियक्कड़ लोग भी तो यह कह सकते हैं कि अभीतक हम दूसरों की बहुतसी दावतोंमें जाकर शराब पीते रहे हैं, अब हम अपने यहां अवसर मानेपर कैसे बंद करदें ? तब क्या कोई भी विवेकी इसी दलीलपर शराब पीना चालू रखना उचित मानेगा? यदि नहीं तो यह दलील मात्र मरणभोजपर कैसे लागू होसकती है ?
दूसरी बात यह है कि जब धीरे धीरे मरणभोजकी प्रथा उठ जायगी तब यह प्रश्न स्वयमेव हक होजायगा । प्रारंभ में सहनशक्ति, साहस और भटलता चाहिये । यदि कोई अभीतक दूसरोंके मरणभोजमें शामिल होता रहा है तो अब अपनी मूढताको स्वीकार कर सबके सामने स्पष्ट कह देना चाहिये और भविष्य में अपनेको मरणभोज में शामिल न होने की घोषणा कर देनी चाहिये ।
(५) शंका - मृत व्यक्तिकी यह अंतिम इच्छा थी कि उसके बाद उसका मरणभोज अवश्य ही किया जाय। इसके लिये वह कुछ रुपया भी निकालकर रख गया है। तो क्या हम उसकी मांखें बन्द होनेपर उसकी इच्छा को कुचल डालें और उसके द्रोही बनें ?
समाधान- मृत व्यक्तिकी अयोग्य इच्छाकी भी पूर्ति करना उचित नहीं है । हां, उसके संकल्पित द्रव्यका सदुपयोग किया जा सकता है। उस द्रव्यको धर्मप्रचार, समाजसुधार और ऐसे ही हितकारी कार्यों में लगाइये जिससे मृत व्यक्तिका नाम चिरस्थायी रह सके । एक दिनके भोजन कर देने से किसका कल्याण होनेवाला
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