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________________ २] मरणभोज। कारक उत्तर कहींसे मिला है। इसलिये मैं मानता हूं कि जैसे चोरी, व्यभिचार, हत्या या अन्य ऐसे ही अत्याचारोंका कोई इतिहास नहीं, उसी प्रकार मरणभोजकी अमानुषिक प्रथ का भी इतिहास नहीं मिलता। हां, आत्मजागृति कार्यालय जैन गुरुकुल-ब्यावरसे प्रगट हुई पुस्तक 'सुखी कैसे बनें ?' में किरियावर (मरणमोज) की उत्पत्तिके सम्बन्धमें लिखा है कि “किसी सेठ के पुत्रने पिताकी मृत्युके रंजसे भोजन छोड़ दिया, तो चार कुटुंबियों ने उसके घरपर भोजनकी थाली ले सत्याग्रह किया कि भार खाओ तो हम खायेंगे। इससे सादा भोजन तो शुरू हुआ किन्तु वह सेठका पुत्र मीठा भोजन नहीं खाता था, उसे शुरू कराने के लिये पुनः मिठाई बनवाकर थाली परोसकर बैठ गये मोर मीठा खाना शुरू कराया। इससे कई लोग पितामक्तिी प्रशंसा करने लगे। यह देख दूसरोंने भी नकल करना चाही और चारकी जगह दस वुटुम्बी आये, फिर तीसरेने २५को बुलाया, फिर सैकड़ों और अब तो हजारों को बुलाकर मरणभोन होने लगे।" जो भी हो, माणभोजकी उत्पत्ति चाहे इस तरह हुई हो या किसी दूपरी तरह, किन्तु यह है बहुत ही भयानक । ब्रह्मणोंने तो इसे धर्मका महान अंग बताया और यह गरीब अमीर सभी हिन्दुओंमें प्रचलित होगई। जिप गरीबने जिन्दगीभर कभी मिष्टान्न न खाया होगा वह भी ४.पने घरके लोगोंकी मृत्यु होनेपर जातिक लोगोंको मिष्टान्न भोजन करना है। कारण यह है कि उसे ब्राह्मण परितों द्वारा यह विश्वास दिलाया जाता है कि मरणमोज करनेपर ही मृतात्माको शान्ति (वं सद्गति मिलेगी। बिना माणभोनके मृताShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034960
Book TitleMaran Bhoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherSinghai Moolchand Jain Munim
Publication Year1938
Total Pages122
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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