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कविता-संग्रह।
नुक्तेकी भेट ! [ रचयिता-कविवर श्री. कल्याणकुमार मैन “शशि"]
सामाजिक अत्याचारोंपर हो लो पानी पानी। युक्त प्रान्तके एक नगरकी है यह करुण कहानी ॥ सरल स्वभावी जैनी लाला दीनानाथ विचारे । क्रूरकालसे कवलित होकर असमय स्वर्ग सिधारे ॥ (१) अपने पीछे वीस वर्षकी विधवा पत्नी छोड़ी। मानों इस निर्दयी कर्मने सुन्दर कली मरोड़ी ॥ लाला दीनानाथ बहुत थे साधारण व्यापारी । खर्च इसलिये होजाती थी कमी कमाई सारी ॥ (२) इस कारण ही अपने पीछे अधिक नहीं धन छोड़ा । क्रिया कर्ममें खर्च होगया जो कुछ भी था थोड़ा । विधवा अबला 'रत्न प्रभा' का रहा न नेक सहारा । कैसे होगा बेचारीका आगे हाय गुज़ारा ॥ (३) पर समाजके माधीशोंका इसपर ध्यान नहीं था। मानों पंचायती राज्यमें इसको स्थान नहीं था । यह निर्दयी समाज न उसकी किञ्चित् सुध लेती थी। विलख विलख कर भबला पानी प्राण दिये देती थी (४) सम्पति, सन्तति हीन प्रथम थी पति भब हुआ पराया। भोली युवती सब कुछ खोकर हाय हुई असहाया ।। तिसपर एक नया संक्ट यह रत्नप्रमापर माया । पंचोंने जल्दी 'नुक्का ' करने का हुक्म सुनाया (५)
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