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(१.५) जया न आपने कदीये, ग्रही ना आपनी माणा । स्मर्ण प्रभु लेश ना कीg, करो मुज कर्म निकंदन ॥४॥ हवे प्रभु पासरो तारो, नहीं कोई साह्य करनारो। तुंही मम प्राण प्राधारो, करो मुज कर्म निकंदन ॥ ५ ॥ सदा हुं ध्यान तव धरतो, तमोने लेश ना परवा । दया प्रभु दिलमें लाकर, करा मुज कर्म निकंदन ॥६॥ तपोबल तेज गुण धारी, मुनियतीन्द्र मनोहारी । विवेक गुण प्रापवा भारी, करो मुज कर्म निकंदन ॥ ७ ॥
भेखरे उतारो राजा भरतरी ए राहतार प्रभु ा तुज बालने, तारो कृपा निधान जी । उमेद धरी हुं आवियो, करवा दर्श सुजान जी ।। ता० १॥ संसार अटवी ममता थकां, देख्या दुःख अनंत जी । कूड कपट अति प्रादर्या, न कीधो संग भवंत जी॥ता० २।। पूर्व पुन्यना जोगथी, पाम्यो मनुष्य अवतार जी। शरण ग्रहो हवे आपनो, करशो भव निस्तार जी॥ता०३॥ मोरादेवी सुत नंदलो, नाभीके कुल भाण जी। युनना धर्म निवारने, पाम्या पद निरवाण जी ॥ ता० ४ ॥ ऋषभ ऋषम रटतो थको, आयो तुज दरवार जी। महेर करी प्रभु बालने, कीजो भवजल पार जी ॥ ता०५॥ सरिराजेन्द्र पय वंदतां, पावे अविचल धाम जी । यतीन्द्रगुरु सुपसायथी, विवेकविजय गुण ग्रामजी ।। ता०६
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