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(६२) अन्येनाष्टापदेन क्षितितलविदितं कांगडातीर्थराजम सधोमुक्तेश्च पन्थारसुमहित विजयानन्दसूरेः कृपातः । सिद्धीनां प्रोद्वमो वै जिनपदविलसन्वल्लभप्रेरणात्तो भूयात्साध्वीभिरेतत्क्षपणकशतकै श्रावकैनित्यसेव्यम् ।।५।। ह्रींकारविजयनायं पूर्णानन्दोयतीश्वरः
सङ्घस्याभ्युदयाननाना, याचतेजिनदेवतः ।।६।। (४) रचयिता-पूज्यनीय उस्ताद बृजलाल जैन होश्यारपुर (बी०एल)
__ तज़: - सिद्धगिरी तीरथ पर जाना जी
कांगड़े तीरथ पर जाना जी......जाना जी सुख पाना जी १. ऐ तीरथ प्राचीन कहाये, इसदी महिमा कही न जाये
सतगुर दा फरमाना जी......कांगड़े तीरथ पर... २. उच्चे किले विच है इक मन्दिर, जिसमें प्रतिमा प्रभु. की सुन्दर
आदिनाथ गुण गाना जी......कांगड़े ३. राजा सुशर्मा ने बनवाया, दुनिया दे विच पुन्न कमाया
लिखया लेख पुराना जी......कांगड़े ४. संवत् चौदा सौ चौरासी, आया संघ दर्श अमिलापी
सिंध से हो के रवाना जी......कांगड़े ५. उपाध्याय श्री जयसागर जी, छत्र-छाया में आया उनकी
यात्रा लाभ उठाना जी......कांगड़े ६. नरेन्द्रचंद्र थे राजा दानी, नगरकोट जिनकी राजधानी
जिनवर का दीवाना जी......कांगड़े ७. राजाजी ने अर्ज गुज़ारी, धन्यभाग आये नगरी हमारी
__ सत् उपदेश सुनाना जी......कांगड़े
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