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________________ ( ५६ ) भास कंचणमय कालसिहि सहिय ए च्यारइ प्रासाद । च्यारइ चिहुँ वरणिहिं नमिय च्यारइ हरई विषाद ॥ गोपाचलपुर सिरिमउड संतिनाह जगसामि । कामियफल कारणि रसिय लीणउ छउं तसु नामि ॥११॥ नंदवणिहिं नंदउ सुचिरु चरमजिणेसर चंद । जग चकोरु जमु दंसणिहिं पामइ परमाणंद ॥ पास पसंसउ कोटिलए गामिहिं महि अभिरामि । मह मन कोइलि जिम रमउ तस गुण अंबारामि ॥१२॥ हेमकुभ सिरिजिणभवणिः ए सवि थुणिया देव । देवालइ कोठिनयरि करउं वीरजिण सेव । दुक्खह दिन्नु जलंजलिय सुखह लधु पसारु.। तीरथ पंचइ जइ नमिय पामिय मोख दयार ॥१३॥ मंगल तीरथ पंथियह मंगल तीरथ पंथ. । जं सुखेहि किर मई कलिय मुकति-नारि-सीमंथ । नारि अच्छइ धरि धरि धणिय जणणी-सा-परुधन्न । जासु कुक्खि उत्पन्न नरु संचइ तीरथ पुन्नु ॥१४॥ इय जयमायर समरिय ताय सवालखपव्वय जिणराय । ता अम्हारिय फूगो आस हडं बोलउं जिणसासण दास ॥१५॥ इणि समरणि नासइ नरग जोग इणि समरणि लाभइ सरग भोग । इणि कारणि तुम्हि मो भविय आज इह पभणहु, निसुणहु सरई काजा ॥ इय नगरकोट पमुक्ख ठाणिहिं जे य जिण मई वंदिया । ते वीरलउंकड देवि जालामुखिय मन्नइ वंदिया ॥ अन्नेवि जे केवि सम्गि महियलि नागलोइहि संठिया । कर जोड़ि ते सवि अज्ज वंदउं फुरउ रिद्धि अचिंतिया ॥१६॥ । ॥ इति श्री नगरकोट्ट-महातीर्थ चैत्यपरिपाटी ॥ ॥ कृतिरियं श्री जयसागरोपाध्ययानाम् ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034917
Book TitleKangda Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantilal Jain
PublisherShwetambar Jain Kangda Tirth Yatra Sangh
Publication Year1956
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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