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तीर्थ-स्तवनावली (१) रचियता-संवत् १४८४ के यात्रा-संघ के नायक
उपाध्याय श्री जयसागर जी विज्ञप्ति त्रिवेणीः की परिशिष्ट संख्या (१) मुझ मन लागिय खंति जालन्धर देसह भणिय । तीर्थ वंदण रेसि नगरकोटि तउ प्रावियउ ॥११॥ बानगंगा पातालगंग व्याहनइ जसु तडिहिं । वणराई घण घाट वाट ति घाटिहिं आगलिया ॥२॥ तहि महिमा भण्डार पहिल उं पहिलइ जिणभवणिं । दीठउ संतिजिणिद नयण अमियरस पारणउं ॥३।। जिणहरि बीजइ रीजुमणि अधिकेर ऊपजए । जहि सोवनमय बिंब रूपचंद रायह तणउं ॥४|| जिणि दीठइ संतोसु मण आणदिहिं ऊससए । अंधारइ उद्योत जयउ सुजगगुरु वीरवरु ॥५॥ जइ त्रीजइ प्रासादि सरवरि राजमराल जिम । संभाविउ रिसहेसु चंपकि चंदनि थुति जलिहिं ॥६।। हिव चडियउ चमकंत अति ऊंचइ गढ़ि कांगड़ए । इहु जाणे मइ किद्ध सिद्धिसिला आरोहणउ ॥७॥ अलजउ अंगि न माइ माइ ताय घरु वीसरिय । सरिय सयल मह कज्ज तहिं रिसहेसर दसणिहि ।।८।। जो हीमालय हुँत राय सुसम्मिहिं. जाणियउ । नेमिसरि जयवंति कंगड़कोटिहि आणियउ ||६|| चन्द्रवंसि जे राय राणी जसु पयतलि लुलइ । अंबिकदेवि पसाइ तहिं मनवंछित फल मिलई ॥१०॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com