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पिछले वर्ष सन् १६५५ के उत्सव पर पधारे और वहाँ रात के समय एक खुली सभा में इस महातोर्थ के बहुमान में जो शुभ सन्देश दिया वह सदा अमर रहेगा । आप ने फरमाया :
" मेरी हार्दिक भावना है कि श्री कांगड़ा तीर्थ पंजाब का शत्रु जय बन जाये । जिस से गुजरात तरफ के लोग इस महातीर्थ की यात्रा को आने आरम्भ हो जायें जिससे उधर के लोगों का पंजाब के लोगों से मेल-जोल बढ़े और आपसी प्रेम पैदा हो | मैं और मेरे साथी यथाशक्ति कांगड़ा तोर्थ की उन्नति के लिए तन मन और धन से सहयोग देने का तैय्यार हैं ।"
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श्री श्रात्मानन्द जैन गुरुकुल गजरांवाला के भूतपूर्व गवर्नर धर्मप्रायण शान्तमूर्ति श्रीमान् बाबू कीर्तिप्रशाद जी जैन वकील बिनोलो जिला मेरठ अपनी सद्भावनायें तारीख ३ फरवरी १६५२ के पत्र में यूं प्रकट करते हैं :
"हृदय से चाहता हूँ कि कांगड़ा तीर्थ दिनोदिन उन्नति करे । अगर आप भाई वहाँ विद्याभवन खोलने का प्रयत्न करें तो बहुत ही अच्छा हो । अगर पंजाबी भाई चाहें तो वहाँ गुरुकुल आसानी से खोल सकते हैं। मैं समझता हूँ वहाँ का जलवायु अच्छा होगा । यात्रा उत्सव की पूर्ण सफलता चाहता हूँ । सब भाई बहिनों को जय जिनेश्वरदेव और सब मुनि महाराजों को वन्दना ।"
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साहित्य तथा इतिहास के इतिहास के परम विद्वान् माननीय डा० बनारसी दास जी जैन अप्रवाल एम० ए० पी० एच० डी
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