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(५२) श्री श्वेताम्बर जैन कांगड़ा तीर्थ यात्रा संघ योग्य धर्म-लाभ के साथ विदित होवे कि आप ने इस शुभ प्रसंग पर सन्देश मंगवाया सो ठीक है।
विश्वपूज्य सुगृहीत नामधेय पांचालदेशोद्धारक न्यायाम्भोनिधि जैनाचार्य १००८ श्रीमद् विजयानन्द सूरीश्वर जी (प्रसिद्ध नाम
आत्माराम जी महाराज साहब) महाराज साहब के पट्टधर पूज्यपाद प्रातः स्मरणीय, स्वनाम धन्य, सुविहितशिरोमणि, अज्ञानतिमिरतरणी, भारत-दिवाकर, कलिकाल-कल्पतरु, पंजाबकेशरी, युगवीर, जैनाचार्य १००८ श्रीमद् विजयवल्लभ सूरीश्वर जी महाराज साहब जो प्रतिवर्ष
आप श्री संघ को सन्देश भेजा करते थे । उसी सन्देश पर मनन किया जाए और आचरण में लाया जाय तो आप सब का उद्धार हो सकता है । तथापि आप श्रीसंघ के पत्र को मान दे कर कुछ लिख रहा हूँ।
कांगड़ा तीर्थ बहुत प्राचीन है। प्राचीन तीर्थ का उद्धार करना यह अपना परम कर्तव्य है।
महापुरुष फरमाते हैं कि नूतन जिनालय के निर्माण की अपेक्षा प्राचीन जिनालय के, प्राचीन तीर्थ के उद्धार करने में आठ गुणा फल होता है।
__आज के युग को देखते हुए अपने को सम्पूर्ण संगठित होकर ऐसे परम पावन प्राचीन तीर्थ को रक्षा करनी चाहिए । अन्य कई तीर्थों को भाँति यह तीर्थ भी अपने हाथों से न चला जाए इस बात को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक जैन का कर्तव्य है कि तन मन धन से सहयोग देकर इस पावन तीर्थ की रक्षा करें।
इस तीर्थ के उद्धार के लिए पूज्यपाद परम गुरुदेव आचार्य भगवन्त ने कई बार उपदेश दिया, कमेटी बनाई गई। गतवर्ष श्री Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com