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वर्ष यात्री-संख्या चार पाँच सौ के लग भग थी।
सन् १६५५ के यात्रा संघ में यद्यपि यात्री-संख्या पिछले वर्षे जितनी नहीं थी तो भी उत्साह काफी था । समाज के अच्छे अच्छे अग्रगण्य इस उत्सव पर पधारे थे। भारतीय जैन समाज के प्रमुख नेता श्रीयुत सेठ फूलचंद शाम जी भाई बम्बई, श्रीमान् सेठ रमणीकलाल जी पारिख बम्बई, माननीय सेठ कीका भाई रमणलालजी पारिख देहली, पंजाब जैन समाज के सर्वप्रिय नेता बाबू ज्ञानदास जी सीनियर-सब-जज देहली तथा जैन दर्शन के प्रखर विद्वान् महान् तार्किक पं० हीरालाल जी जैन शास्त्री अम्बाला के नाम विशेष लिखने योग्य हैं। इन महानुभावों के पधारने से उत्सव की शोभा में चार चाँद लग गये थे।
अब १६५६ के वर्ष का स्वागत करना है । यह यात्रा उत्सव भी पूर्व के समान फाल्गुण शुदि त्रयोदशी, चतुर्दशी तथा पूर्णमासी तीन दिनों के लिए चालू रहेगा । इस वर्ष हमारे प्रखर विद्वान् मुनिराज श्री प्रकाशविजय जी, श्री नन्दनविजय जी, श्री वसंतविजय जी तथा महान प्रभाविक साध्वियां श्री शीलवती जी, श्री मृगावती जी, श्री सुज्येष्ठा श्री जी महाराज भी पधारने को कृपा कर रही हैं जिससे इस वर्ष चतुर्विध संघ सम्मेलन भरने की पूरी पूरी सम्भावना है जिससे अनुमान किया जाता है कि यह उत्सव कांगड़ा तीर्थ के इतिहास में अद्वितीय होगा। चारों ओर से यात्री भाई और बहिनों के पधारने के समाचार प्राप्त हो रहे हैं। प्रोग्राम को विशेष रोचक बनाने के लिए संगीत और भाषणों का अति सुन्दर कार्यक्रम बन रहा है अतः पूरी सम्भावना है कि यह उत्सव विशेष ऐतिहासिक महत्त्व का होगा और सफल रहेगा।
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