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(३७) तथा देहली आदि स्थानों से भी प्रेमी सज्जन इस तीर्थ की यात्रा का लाभ उठा चुके हैं।
इस प्रकार सन् १९४६ के बाद प्रति वर्ष यात्रा में विशेष उत्साह और जागृति देखने में आ रही है । सन् १९५० में हमारे प्रखर विद्वान् मुनिराज पन्यास श्री विकाशविजय जी तथा हीरविजय जी भी यात्रा उत्सव पर पधारे थे जिस से विशेष प्रेरणा प्राप्त हुई थी। १६५१, १९५२ तथा १९५३ के वर्षों में दिन प्रति दिन रौनक बढ़ती गई।
परन्तु सन् १६५४ का उत्सव कांगड़ा के इतिहास में विशेष स्थान रखता है क्योंकि इतिहास में सर्वप्रथम उत्सव के इन्हीं दिनों में इसी नगर कांगड़ा में पंजाब के जैनों की मुख्य सभा-श्री आत्मानन्द जैन महासभा पंजाब का वाषिक अधिवेशन भी पूरी शान के साथ मनाया गया था। हमारे मान्य नेता धर्म प्रेमो ला० बाबू राम जी वकील जीरा निवासी इस अधिवेशन के प्रधान थे । अधिवेशन के कारण अनेकों मान्य प्रतिष्ठित व्यक्ति इस वर्ष उत्सव पर पधारे थे जिन में श्री श्वेताम्बर जैन कान्स के उप-प्रधान माननीय सेठ मोहन लाल जी चौकसी बम्बई, माननीय ला० ज्ञानदास जी सीनियर सबजज देहली, सेठ कीका भाई रमणलाल जी पारिख देहली, ला० दौलतराम जी ऐडवोकेट होश्यारपुर, ला० खुशीराम जी ऐडवोकेट जालन्धर, जैन दर्शन के प्रकांड विद्वान् पं० हंसराज जी शास्त्री लुधियाना, प्रभाविक वक्ता ला० पृथ्वी राज जी जैन प्रोफैसर जैन कालिज अम्बाला, मान्य संगीतकार मास्टर नत्थासिंह जी लुधियाना आदि महानुभावों का नाम विशेष उल्लेखनीय है । महासभा के अधिवेशन से समाज में विशेष जागृति पैदा हुई और आनन्द बना रहा । इस Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com