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। ३० ) पर लगे हुए पत्थर के गोल से चक्रों का स्वरूप कांगड़ा किले में पड़े पत्थर के चक्रों के स्वरूप से विल्कुल मिलता जुलता है। सम्भव है कि यह दोनों मन्दिर एक ही समय के बने हुए हों।।
मन्दिर जी के मूल भाग और बाहरी भाग के स्वरूप की भारी भिन्नता, महाराजा सुशर्मा के हाथों प्रतिष्ठित होने के लोक प्रवाद और जैन मतियों के अस्तित्व से हमें दृढ़ विश्वास हो रहा है कि यह पूर्वकाल का कोई जेन मन्दिर ही होना चाहिये।
नन्दनवनपुर (नादौन)-संवत् १४८४ का यात्रा-संघ कांगड़ा नगर से विहार करके गोपाचलपुर, नन्दनवनपुर, कोटिल-ग्राम और कोठोपुर आदि स्थानों पर गया था जिन के अस्तित्व के सम्बंध में अभी कोई पक्की जानकारी प्राप्त नहीं हो सकी । इनमें से केवल नंदनवनपुर के सम्बन्ध में मालूम हुआ है कि इसे आजकल नादौन कहते हैं । यहाँ पर विराजमान प्राचीन मन्दिर के बारे में अभी कुछ मालूम नहीं हो सका। हां यहाँ पर आज स्थानकवासी जैनों के थोड़े से घर मौजूद हैं। नादौन से दस बारह मील दूरी पर सुजानपुर नाम का एक कसबा है यहाँ भी स्थानकवासी जैनों के थोड़े से घर में इन दो स्थानों के सिवा कांगड़ा के सारे जिले में आज जैनों की कहीं बस्ती नहीं है।
सुना है कुछ वर्ष पूर्व पालमपुर के सुन्दर कसबे में भी जैनों की थोड़ी सी बस्ती थी परन्तु आज वहाँ कोई जैन नहीं है । इसके अतिरिक्त और भी कई स्थानों पर जैन मूर्ति आदि स्मारकों के मौजूद होने के समाचार सुने जा रहे हैं। इस बात की भारी आवश्यकता है कि कांगड़े के सारे क्षेत्र की शोध खोज की जावे ऐसा होने पर यहाँ से ऐतिहासिक महत्त्व की विशेष सामग्री मिलने की पूरी सम्भावना है।
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