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कला का सुन्दर नमूना, एक देवालय शोभायमान है। यह मन्दिर संवत् एक का बना हुआ है जिस का लेख इस मन्दिर के द्वार पर मौजूद है। यह मन्दिर भी महाराजा सुशर्मा का बनाया हुआ कहा जाता है। परन्तु महाराजा सुशर्मा जो पाडव काल में हुए और मन्दिर जी का संवत् एक का बनाया जाना, यह दोनों बातें परस्पर विरुद्ध होने से अभी इस का कुछ निर्णय नहीं किया जा सकता परन्तु यह तो निर्विवाद है कि यह मन्दिर है अति प्राचीन ।
मन्दिर जी के मूल-द्वार के बाहर आस-पास की दोनों दीवारों पर शारदा लिपि में लिखे दो प्राचीन विशाल शिला-लेख मौजूद हैं जो बड़े महत्त्व के होने चाहिये इन की जानकारी प्राप्त करनी अति
आवश्यक है । मन्दिर जी के मूल भाग में एक शिवलिङ्ग स्थापित है परन्तु मन्दिर जी का मूल स्थान बिल्कुल नया बना प्रतीत होता है जब कि बाकी का सारा भाग अति प्राचीन दिखाई दे रहा है। मन्दिर जी के बाहरी भाग पर चारों तरफ राजा आदि और देवी देवताओं की हजारों छोटी छोटी मूर्तियाँ खुदी हुई हैं जिन में पद्मासन में विराजमान कुछ जैन तीर्थंकरों की मूर्तियों के चिन्ह भी दिखाई देते हैं
और कुछ जैन साध्वियों की मूर्तियों के चिन्ह भी स्पष्ट दीख रहे हैं जिन के एक हाथ में रजोहरण है और दूसरा हाथ मुंहपत्ती को धारण किये है। इसी प्रकार मन्दिर जी के आस-पास दीवारों पर भी अनेकों ऐसी ही मूर्तियाँ देखने में आती हैं। इन सभी मूर्तियों के स्वरूप का जानना ऐतिहासिक दृष्टि से बड़े महत्त्व का होगा। इसी मन्दिर में हमारे कुछ और भी गौरव चिह्न जैन मूत्तियों के खण्डों के रूप में एक
ओर पड़े दिखाई देते हैं जिन्हें हमारे कई जैन भाई जो इधर भ्रमणार्थ जाते रहे हैं, स्वयं अपनी आँखों से देख चुके हैं । इस मन्दिर के शिखर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com