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________________ (२७) भाग ५ में दिये गये शब्द नीचे दिये जाते हैं जिन से पता चलता है कि कांगड़ा के दोवान जैन धर्म के उपासक थे। ____ "यद्यपि वर्तमान समय में कांगड़े में कोई जैन नहीं है परन्तु पहिले दिल्ली के बादशाहों के हाथ नीचे जैन यहाँ की दीवानगीरी किया करते थे।" जैन मूर्तियां परिवर्तित रूप में :-कांगड़ा नगर में कुछ ऐसी मुत्तियां भी देखने में आई हैं जो वास्तव में पद्मासन में बैठो हुई जैन तीर्थंकरों की मूर्तियां हैं परन्तु उनके पद्मासन के स्वरूप को कुरेद कर बदला हुआ रूप स्पष्ट दिखलाई देता है और श्याम रंग की होने से उनको भैरव का रूप दे कर उन्हें तैल और सिन्धूर से पूजा जाता है। भावड़यां दा खूह :-प्राचीन कांगड़ा में एक कुआं है जिसे. + भावड़यां दा खूह अर्थात् जैनों का कुआं कह कर पुकारा जाता है। कांगड़ा में जैन :-कांगड़ा के मान्य कांग्रेस कार्यकर्ता श्री. हीरालाल गुप्ता ने बातचीत के दौरान में हमें बताया कि उन्हों ने कांगड़ा में जैनों को रहते स्वयं देखा है । उन्हों ने कांगड़ा के एक जैन वंश का जिकर किया जिस का एक मेम्बर नानकचन्द अपने रिश्तेदारों के पास होश्यारपुर में रहा करता था। इस पर मैंने इस बात की जांच की और उनका कथन सत्य सिद्ध हुआ। जयन्ति देवी का स्थान :-किला कांगड़ा से कुछ दूर एक. टीले पर जयन्ति देवी का स्थान बना हुआ है जो कि किले से साफ. दिखाई देता है। उपाध्याय श्री जयसागर जी ने विज्ञप्ति त्रिवेणिः के अन्त में जो परिशिष्ट नं. १ दिया है उस में अम्बिकादेवी ज्वालामुखी तथा वीर-लउंकड़ के सिवा जयन्तिदेवी को भी सम्मान दिया गया है। सम्भव है कि जयन्तिदेवी का भी जैन शासन से कुछ सम्बन्ध हो । + पंजाब में भावड़ा शब्द श्वेताम्बर जैनां के लिये प्रयोग होता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034917
Book TitleKangda Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantilal Jain
PublisherShwetambar Jain Kangda Tirth Yatra Sangh
Publication Year1956
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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