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(२२) भीतर का क्षेत्रफल इतना थोड़ा है कि कठिनता से तीन चार पुरुष ही खड़े हो सकते हैं। इस मंदिर का द्वार भी ऊंचाई में बहुत छोटा है जिसके कारण कुछ झुककर हा बाहर आना पड़ता है। इस मंदिर के द्वार पर आस पास और ऊपर की ओर तीन तरफ चौबीस तीर्थंकरों की पद्मासन में विराजमान मूर्तियों के चिन्ह मौजूद हैं जिसमें से कुछ तो स्पष्ट दिखाई देते हैं और कुछ अस्पष्ट रूप में दीख पड़ते हैं और कुछ एक के स्वरूप संपूर्णरूप से मिटचु के हैं।
इसी प्रकार इस मंदिर के साथ वाल जैन मंदिर के द्वार पर भी ऊपर की ओर ठोक मध्य में पद्मासन में विराजमान तीर्थकर की एक मूर्ति का चिन्ह मौजूद है जो इस मन्दिर को जैन मन्दिर घोपित कर रहा है । द्वार के आस पास की दोनों दीवारों पर कुछ देवी-देवताओं के भी चिन्ह खड़े हैं जो इस मंदिर के अधिष्ठायक देवता ही जान पड़ते हैं इस मन्दिर में इस समय मूर्ति कोई मौजूद नहीं है परन्तु एक खाली सिंहासन अवश्य विराजमान है जो कि इस बात का द्योतक है कि इम सिंहासन पर भी श्री जैन तीर्थंकरों की मूर्तियाँ विराजमान थीं।
भगवान आदिनाथ की वर्तमान मूर्ति कांगड़ा की जनता में पार्श्वनाथ के नाम से प्रसिद्ध है और पुरातत्व विभाग के डायरैक्टर जनरल सर ए. सी. कनिंघम ने अपनी रिपोर्ट में 'पार्श्वनाथ के मन्दिर में आदिनाथ की प्रतिमा' इस प्रकार लिखा है और मन्दिर के क्षेत्र के समीप ही जो बड़ा द्वार है वह भी पार्श्वनाथ गेट के नाम से सुनने में
आता है इन बातों से सिद्ध है कि यहाँ कोई श्री पार्श्वनाथ की प्रभाविक प्रतिमा अवश्य होगी।
जैन मन्दिरों के समीप ही अम्बिकादेवी का एक स्थान है जहाँ पूर्व में अम्बिकादेवी की एक मूर्ति विराजमान थी जो सन् १९३२ में कुछ मुसलमान युवकों द्वारा तोड़ दी गई कही जाती है । अम्बिकादेवी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com