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था परन्तु इस पर मूर्त्ति कोई मौजूद नहीं थी । इस से यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि यह कमरा भी जैन मंदिर का ही भाग था जिस की किसी समय किसी कारण वश हमारी आँखों से ओझल हो गई ।
मूर्त्तियां
इस विशाल मन्दिर में अनेकों जैन तीर्थकरों का मूर्त्तियों के स्थान पर आज एक छोटे से मन्दिर में केवल भगवान् श्री आदिनाथ की विशाल प्रभाविक मूर्त्ति ही विराजमान है जो तीर्थ सम्बंधी हमारी ऐतिहासिक सामग्री का एक विशेष अंग है । यह मूर्त्ति हल्के श्याम रंग के पत्थर की बनी है जिसकी गद्दी पर एक सुन्दर बैल का चिन्ह खुदा हुआ है जो भगवान् ऋषभदेव (आदिनाथ) का चिह्न है । मूर्त्ति की गर्दन पर कानों के दानां ओर बालों के गुच्छे लटकते दिखाई पड़ते हैं यह भी भगवान् ऋषभदेव के स्वरूप को ही प्रदर्शित करते हैं। मूर्त्ति की गद्दी पर एक लेख खुदा हुआ है जिससे यह पता चलता है कि यह मूर्त्ति महाराजा संसार चंद्र प्रथम के समय में सन् १४६६ संवत् वि० सं० १५२३ स्थापित हुई । भगवान् ऋषभदेव (आदिनाथ) की वह प्रतिमा जो वि० में सं० १४८४ के यात्रासंघ के समय विराजमान थी इससे जुदा थी । वह मूर्ति कहां गयी इसके संबंध में आज कोई जानकारी प्राप्त नहीं है । भगवान् आदिनाथ की वर्त्तमान मूर्त्ति जिस सिंहासन पर विराजमान है उसके और सिंहासन के क्षेत्रफल को देखने से मालूम पड़ता है कि यह मूर्ति इस स्थान पर इसी मन्दिर के किसी भग्नावशेष स्थान से लाकर रक्षा निमित्त यहाँ पर स्थापित कर दी गई है।
मूर्त्ति जिस स्थान पर विराजमान है उसके द्वार का मुख पश्चिम दिशा की ओर है और उस द्वार के ठीक सामने कोई चार फीट की दूरी पर एक दीवार खड़ी है जिस पर कुछ देवी-देवताओं की मूर्तियां खुड़ी हैं जो कि जैनों को मान्यता के अनुकूल इसी मन्दिर के अधि ट्रायक देव हैं। इस समय जहाँ मर्त्ति स्थापित है उस मन्दिर जी के
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