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(२०) और नगर के मन्दिरों को लूटने का पूरा विवरण दिया है । इस प्रकार कई बार यह ध्वंस हुआ परन्तु इस पर अंतिम आक्रमण प्रकृति का हुआ अर्थात सन् १६०४ के भूकम्प से यह प्रायः समूचा ध्वंस हो गया, गौरवशून्य हो गया। इसका मुख्यद्वार तथा कुछ बाहरी दीवारें यद्यपि दृढ़ता से खड़ी हैं परन्तु आसानी से इसका पुनरुद्धार हो सके, यह बात अति कठिन है।
किले के पतन के साथ हो साथ इस में शोभायमान वह जैन मंदिर भी ध्वंस हो गया तथा प्रतिभाशाली मूर्तियां भी गतगौरव हो गई आँखों से ओझल हो गई। उस विशाल मन्दिर के स्थान पर आज इस का केवल एक छोटा सा भाग ही शेष बचा हुआ है जिस में दो छोटे छोटे शिखरबंध जैन-मन्दिर और प्राचीन मंदिर के भाग रूप ही एक शिखरबंध चबूतरा खड़ा है। इनके आस-पास कई कमरों के नष्टप्रायः भाग (ध्वंसावशेष) साफ नजर आते हैं जिन्हें देखने से यह स्पष्ट मालूम पड़ता है कि यह सभी किसी विशाल मंदिर के ही भाग थे। कहीं कहीं टूटे स्तम्भ बिखरे पड़े हैं और कहीं कहीं प्राचीन कला-कौशल के सुन्दर चिह्न भग्नावशेष दिखाई पड़ते हैं । कई कमरे मिट्टी और खण्डहरों से दबे पड़े हैं तो कुछ जेन मूर्तियों के स्मारक भी बिगड़े रूप में पड़े दिखाई पड़ते हैं । ऐसा प्रतीत होता है कि यदि इस क्षेत्र की खुदाई हो तो बहुत सम्भव है कि यहाँ से कुछ महत्वशाली स्मारक मिलें जिस से हमारे गत-गौरव के प्रमाणों की पुष्टि हो सके।
श्री मुनिलाल जी, जो होश्यारपुर के सुश्रावक हैं, ने मुझे बताया कि भकम्प से पहिले मैंने मंदिर क्षेत्र की सीढ़ियों के साथ वाले कमरे को, जो अब खण्डित पड़ा है, देखा था उन दिनों यह ठीक अवस्था में मौजूद था और इस में एक चौमुखा सिंहासन विराजमान Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com