SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१८) ताम्यूल भेंट करके उनका सत्कार किया तथा सब ने बड़े अानन्द से अपने नगर में प्रवेश किया एवं यात्रा सम्पूर्ण हुई। __ फरीदपुर पहुँचने के समाचार पा कर मलिकवाहन नगर के मान्य श्रावक उपाध्याय श्री को अपने नगर में ले जाने के लिये विनति करने आए । उनकी विनति को स्वीकार करके उपाध्याय जी मलिकवाहन पहुँचे जहाँ पर पाटन में विराजमान श्री जिनभद्रसूरि जी की ओर से आदेश पहुँचा कि आपके नगरकोट महा-तीर्थ की यात्रा करने के समाचार सुने हैं सो उसका पूरा वृत्तांत भेजो। उनकी आज्ञा को मान देते हुए यहाँ से उपाध्याय जी ने यह विज्ञप्ति त्रिवेणिः नामक पत्र बड़ी आलंकारिक भाषा में लिख कर उन की सेवा में पाटन भेजा। इति शुभम् ॐ अहं नमः Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034917
Book TitleKangda Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantilal Jain
PublisherShwetambar Jain Kangda Tirth Yatra Sangh
Publication Year1956
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy