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________________ ( १७ ) कर संघ कोटिलग्राम गया और भगवान् पाश्र्श्वनाथ की यात्रा की । तदनन्तर पर्वतों की घाटियां तथा शिखरों को पार करते हुए कोठीपुर नगर में पहुँचा और यहाँ पर दस दिनों तक ठहर कर भगवान् महावीर की बड़े भक्ति भाव से आराधना की । यहाँ पर श्रावकों के बहुत घर थे इसलिये उनकी विशेष प्रेरणा से यहाँ पर इतने दिन ठहरना पड़ा । संघपति ने बड़े ठाठ से यहाँ पर साधर्मी वात्सल्य किया और कई प्रकार की प्रभावनाएँ भी कीं । ११ वें दिन संघ ने यहाँ से विहार किया और कुछ दिनों के बाद सप्तरुद्र नाम के भारी प्रवाह वाले जलाशय के निकट पहुँचा । यहाँ पर नावों में बैठ कर संघ ने चालीस मील के लगभग रास्ता पार किया और देवपालपुर पत्तन जा पहुँचा ! वहाँ पर मृदुपक्षीय सं० घटसिंह तथा खरतरगच्छीय सा० सारंग आदि मान्य श्रावकों ने संघ का बड़े सम्मान पूर्वक नगर प्रवेश कराया । यहाँ भी संघ दस दिन ठहरा और कोठीपुर की तरह यहाँ भी संघपति ने माधर्मीवात्सल्य किया । यहाँ के श्रीसंघ ने उपाध्याय जी को चतुर्मास करने की प्रार्थना की जिस पर महाराज ने श्री मेघराजगणि, सत्यरुचिगणि, कुल केसरमुनि और रत्नचन्द्र चुल्लक इन चार शिष्यों को चतुर्मास ठहरने की आज्ञा दी और संघ सहित फरीदपुर की ओर रवाना हो पड़े और विपाशा नदी के तटों को लांघते हुए संघ उसी मैदान में आ पहुँचा जहाँ पर उसने अपना पहला पड़ाव डाला था । फरीदपुर के श्रावकों को संघ के आने के समाचार मिले तो सभी स्वागत को आए और मिलाप करके बहुत प्रसन्न हुए तथा बड़े चाव से तीर्थ यात्रा के समाचार सुन कर उत्साहित हुए । संघपति सोमा के भाई सा० पासदत्त और हेमा ने सभी को नारियल सुपारी और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034917
Book TitleKangda Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantilal Jain
PublisherShwetambar Jain Kangda Tirth Yatra Sangh
Publication Year1956
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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